केंद्र सरकार डार्क पैटर्न अपनाने वाली कई कंपनियों से निपटने की तैयारियां कर रही है। इस संदर्भ में सरकार 28 मई को ऑनलाइन कंपनियों के साथ बड़ी बैठक करने जा रहा है। केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री की अध्यक्षता की बैठक में होगी। इस बैठक में कई फूड, फार्मेसी, यात्रा, सौंदर्य प्रसाधन, खुदरा, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र की प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियां भाग लेंगी। साथ ही कई लिस्टेड कंपनियां भी शामिल होंगी।
डार्क पैटर्न को लेकर होने वाली इस बैठक में अमेजन, फ्लिपकार्ट, वन एमजी, एप्पल, बिगबास्केट, मीशो, मेटा, मेकमाईट्रिप, पेटीएम, ओला, रिलायंस रिटेल लिमिटेड, स्विगी, जोमैटो, यात्रा, उबर, टाटा, ईजमाई ट्रिप, क्लियर ट्रिप, इंडियामार्ट, इंडिगो एयरलाइंस, जिगो, जस्ट डायल, मेडिका बाज़ार, नेटमेड्स, ओएनडीसी, थॉमस कुक और व्हाट्सएप जैसी कंपनियां शामिल होगी।
दरअसल, डार्क पैटर्न एक तरह का यूजर इंटरफेस होता है जो इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि इससे कंपनी का फायदा हो सके। कंपनी अपने प्लेटफॉर्म पर प्राइसिंग और प्रोडक्ट डिटेल से जुड़ी कुछ चीजें हाइड करती हैं या ऐसी जगह रखती हैं जहां यूजर्स को दिखता नहीं है। कई बार प्रोडक्ट खरीदने के लिए कंपनी एक अर्जेंसी बना देती हैं। जैसे आपको कोई बेहतर डील कुछ समय के लिए दिखती है, उस पर टाइमर लगा होता है। ऐसे में ग्राहक को लगता है कि इसे अभी नहीं खरीदा तो उसे ऑफर्स का फायदा नहीं मिल पाएगा और वो फटाफट वो प्रोडक्ट खरीद लेता है। कुल मिलाकर कहें तो डॉर्क के जरिए कंपनियां ग्राहकों को मैनिपुलेट करती हैं, जिससे वो उनका प्रोडक्ट खरीद लेते हैं। डार्क पैटर्न सिर्फ ऑनलाइन ही नहीं होता है, बल्कि कंपनियां इसे ऑफलाइन भी करती हैं।
अर्जेंसी: इसके तहत कंपनी अक्सर ग्राहक से झूठ बोला जाता है। इसमें यूसर्ज के सामने आपत स्थिति पैदा करते हुए कहा जाएगा कि डील खत्म होने वाली है, स्टॉक खत्म होने वाला है, रेट बढ़ने वाले हैं आदि। ताकि लोग जल्दी खरीदारी कर सके। वहीं, बास्केट स्नीकिंग डार्क पैटर्न में ग्राहक को बिना बताए ही उसे एक्स्ट्रा प्रोडक्ट दे दिया जाता है। इसके बाद उस अतिरिक्त प्रोडक्ट की कीमत भी उसके बिल में जोड़ दी जाती है।
कंफर्म शेमिंग एक ऐसा डार्क पैटर्न है, जिसके तहत किसी भी साइट में एंट्री कर लेने के बाद वहां से एग्जिट करने में बहुत मुश्किल होती है। यानी जानबूझकर वेबसाइट पर रोके रखने की कोशिश की जाती है।
फोर्स्ड एक्शन के डार्क पैटर्न में ग्राहकों को तब तक किसी वेबसाइट में प्रवेश नहीं दिया जाता है, जब तक कि वह कोई प्रोडक्ट ना चुन ले। जबकि नैनिंग डार्क पैटर्न का वह तरीका है, जिसके तहत ग्राहकों को किसी प्रोडक्ट को खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। बेट एंड स्विच के डार्क पैटर्न में ग्राहक की तरफ से जिस वस्तु की खरीदारी की जाती है, उसके बदले दूसरी वस्तु बेच दी जाती है और फिर कंपनी की तरफ से बहाना बनाया जाता है कि स्टॉक खत्म होने की वजह से वैकल्पिक प्रोडक्ट दे दिया गया है।
हिडेन कॉस्ट में ई-कॉमर्स कंपनी की तरफ से आपको पहले इसके बारे में नहीं बताया जाता है, लेकिन आपके बिल में उसकी कीमत जोड़ दी जाती है। इसके अलावा ट्रिक क्वेश्चन पैटर्न में इसके तहत अगर शॉपिंग के बीच में अचानक से आपसे पूछा जाता है कि क्या आप डिस्काउंट और नए कलेक्शन से जुड़े अपडेट वाले मैसेज अब नहीं पाना चाहते हैं? इसे भी डार्क पैटर्न माना जाता है। रिकरिंग पेमेंट के तहत कंपनी 30 दिन या एक तय अवधि का फ्री ट्रायल देती है और उसके बाद बिना ग्राहक की मंजूरी के ही फिर से सब्सक्रिप्शन के लिए उनके खाते से पैसे काट लिए जाते हैं। रोग मालवेयर डार्क पैटर्न में रोग मालवेयर यानी कोई वायरस किसी उपभोक्ता के कंप्यूटर या मोबाइल में डाल देना भी डार्क प्रैक्टिस ही है, जिसका मकसद ग्राहकों की पसंद से छेड़छाड़ करना या उन्हें कुछ करने के लिए उकसाना होता है।