सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली सरकार के इस रुख पर आपत्ति जताई कि 2002 के नीतीश कटारा हत्याकांड में बिना किसी छूट के 20 साल की जेल की सजा काट रहे एक दोषी को उसकी हिरासत पूरी होने के बाद भी रिहा नहीं किया जा सकता।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अर्चना पाठक दवे के इस तर्क पर हैरानी जताई कि सुखदेव यादव उर्फ पहलवान की स्वत: रिहाई नहीं हो सकती है। पीठ ने कहा, हम एक व्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े मामले पर विचार कर रहे हैं। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक दोषसिद्धि बरकरार रखी गई है। निश्चित अवधि दी गई है। यदि हम पाते हैं कि उसे कानूनी रूप से अनुमेय अवधि से अधिक हिरासत में रखा गया है, तो वह हिरासत अवैध होगी।
हिरासत का प्रत्येक दिन अवैध होगा। यादव की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ मृदुल ने कहा कि उनके मुवक्किल ने 9 मार्च 2025 को सजा पूरी कर ली थी। उन्होंने 9 मार्च के बाद यादव को हिरासत में रखने के किसी भी कानूनी औचित्य से इन्कार किया और कहा कि दिल्ली सरकार सजा की गलत व्याख्या कर रही है। हालांकि, दवे ने तर्क दिया कि 20 साल बाद स्वत : रिहाई नहीं हो सकती है और आजीवन कारावास का मतलब जीवन के शेष रहने तक जेल होता है। एएसजी ने आपत्ति भी उठाई कि याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी याचिका में रिहाई नहीं, बल्कि फरलो (छुट्टी) मांगी थी।
3 अक्तूबर, 2016 को,सुप्रीम कोर्ट ने विकास और उसके चचेरे भाई विशाल को कटारा के सनसनीखेज अपहरण और हत्या में उनकी भूमिका के लिए बिना किसी छूट के 25 साल की जेल की सजा सुनाई थी। सह-दोषी यादव को इस मामले में 20 साल की जेल की सजा दी गई थी। उन्हें 16-17 फरवरी, 2002 की मध्यरात्रि को एक शादी समारोह से कटारा का अपहरण करने और फिर विकास की बहन भारती यादव के साथ कथित प्रेम संबंध के कारण उसकी हत्या करने के लिए दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई थी।
भारती उत्तर प्रदेश के राजनेता डी पी यादव की बेटी थी। निचली अदालत ने टिप्पणी की थी कि कटारा की हत्या इसलिए की गई क्योंकि विशाल और विकास यादव भारती के साथ उसके प्रेम संबंध को मंजूरी नहीं देते थे क्योंकि वे अलग-अलग जातियों के थे।