नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत अब अपने नए कार्यकाल में कई संवैधानिक और नीतिगत दृष्टि से महत्वपूर्ण मामलों पर फैसला सुनाने की तैयारी में है। इनमें टैरिफ निर्धारण, राष्ट्रपति की शक्तियों की सीमा और नागरिकता से जुड़े विवाद प्रमुख हैं। इन मामलों के फैसले न केवल संवैधानिक व्याख्या को नया आयाम देंगे, बल्कि केंद्र और राज्यों के बीच अधिकार संतुलन पर भी गहरा प्रभाव डाल सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के नए सत्र में सबसे पहले चर्चा में आने वाला मामला ऊर्जा क्षेत्र में टैरिफ निर्धारण से जुड़ा है। यह विवाद इस बात को लेकर है कि बिजली दरों के पुनर्निर्धारण का अधिकार केंद्र सरकार के अधीन होगा या राज्य नियामक आयोगों के पास रहेगा। कोर्ट का फैसला आने वाले वर्षों में ऊर्जा क्षेत्र की नीति और उपभोक्ता दरों पर बड़ा असर डाल सकता है।
दूसरा अहम मुद्दा राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्तियों से जुड़ा है। इस पर अदालत यह तय करेगी कि राष्ट्रपति द्वारा कुछ विशेष परिस्थितियों में लिए गए निर्णय—जैसे क्षमादान या अध्यादेश जारी करने—की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है या नहीं। विशेषज्ञों के अनुसार, इस मामले में आने वाला फैसला कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन को परिभाषित करेगा।
तीसरा प्रमुख मामला नागरिकता कानून और उसके तहत जारी अधिसूचनाओं से संबंधित है। इसमें यह तय किया जाएगा कि क्या केंद्र सरकार के कुछ हालिया संशोधन नागरिकता अधिनियम के प्रावधानों और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) के अनुरूप हैं या नहीं। यह फैसला देश में नागरिकता नीति की दिशा तय करने में अहम साबित हो सकता है।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के आगामी कार्यकाल में राज्यपालों की नियुक्ति और उनके अधिकार क्षेत्र, डेटा संरक्षण से जुड़े मामलों, और डिजिटल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी सुनवाई होनी है।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इन फैसलों से भारतीय लोकतंत्र की संस्थागत रूपरेखा पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। कोर्ट का यह सत्र संविधान की मूल भावना—सत्ता संतुलन, नागरिक अधिकारों और न्यायिक स्वतंत्रता—की व्याख्या को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है।





