न्यूयॉर्क/तेहरान। संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में आयोजित हालिया बैठक के दौरान ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु समझौते (JCPOA) को लेकर एक बार फिर सीधा टकराव देखने को मिला। लंबे समय से ठंडे बस्ते में पड़ी इस वार्ता को पुनर्जीवित करने की कोशिशें नाकाम होती दिख रही हैं। जहाँ अमेरिका ने ईरान पर परमाणु कार्यक्रम की आड़ में अंतरराष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया, वहीं ईरान ने स्पष्ट कर दिया कि जब तक उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध पूरी तरह नहीं हटते, वह पीछे नहीं हटेगा।
वार्ता में टकराव के मुख्य कारण (कहां फंसा है पेच?
दोनों देशों के बीच गतिरोध का मुख्य कारण एक-दूसरे पर विश्वास की कमी और शर्तों का कड़ा होना है। पेच मुख्य रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर फंसा है:
- प्रतिबंधों की वापसी: ईरान की पहली शर्त है कि अमेरिका उस पर लगे सभी व्यापारिक और तेल निर्यात संबंधी प्रतिबंधों को तुरंत हटाए। दूसरी ओर, अमेरिका का कहना है कि पहले ईरान को यूरेनियम संवर्धन (Uranium Enrichment) की सीमा घटानी होगी।
- निगरानी और पहुंच: अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने शिकायत की है कि ईरान अपने कुछ संदिग्ध परमाणु ठिकानों की जांच की अनुमति नहीं दे रहा है। अमेरिका इसे ‘असहयोग’ मान रहा है।
- गारंटी की मांग: ईरान चाहता है कि अमेरिका लिखित गारंटी दे कि भविष्य में कोई भी नई सरकार (जैसे ट्रम्प प्रशासन ने किया था) इस समझौते से एकतरफा बाहर नहीं होगी। अमेरिका के लिए ऐसी संवैधानिक गारंटी देना मुश्किल हो रहा है।
यूरेनियम संवर्धन की बढ़ती सीमा ने बढ़ाई चिंता
विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान अब परमाणु हथियार बनाने के बेहद करीब पहुँच गया है।
- 60% तक संवर्धन: रिपोर्टों के अनुसार, ईरान ने यूरेनियम को 60% शुद्धता तक संवर्धित कर लिया है, जो कि सैन्य ग्रेड (90%) के काफी करीब है।
- क्षेत्रीय सुरक्षा: इजरायल और खाड़ी देशों ने अमेरिका पर दबाव बनाया है कि वह ईरान के प्रति नरम रुख न अपनाए, क्योंकि इससे मध्य-पूर्व में हथियारों की रेस शुरू हो सकती है।
दोनों पक्षों के आधिकारिक बयान
बैठक के दौरान दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने सख्त लहजे का इस्तेमाल किया:
“अमेरिका को समझना होगा कि ‘दबाव की नीति’ काम नहीं करेगी। हमने हमेशा कूटनीति का रास्ता चुना है, लेकिन हम अपने राष्ट्रीय हितों और वैज्ञानिक प्रगति के साथ समझौता नहीं करेंगे।” — ईरानी विदेश मंत्रालय
“ईरान का बढ़ता परमाणु कार्यक्रम वैश्विक शांति के लिए खतरा है। हमारे पास कूटनीति के अलावा ‘अन्य विकल्प’ भी खुले हैं, यदि तेहरान गंभीरता नहीं दिखाता।” — अमेरिकी विदेश विभाग
कूटनीतिक समाधान की उम्मीदें कम
यूरोपीय देशों (ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी) ने मध्यस्थता की कोशिश की है, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध और बदलती वैश्विक परिस्थितियों के कारण परमाणु वार्ता की प्राथमिकता कम होती दिख रही है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और बातचीत की मेज पर लौटने की अपील की है।
यदि आगामी कुछ हफ्तों में कोई ठोस सहमति नहीं बनती है, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ईरान पर और कड़े प्रतिबंध लगा सकती है, जिससे तनाव युद्ध की स्थिति तक पहुँच सकता है।





