Wednesday, October 30, 2024

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अल्‍मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय सीट

अल्‍मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय सीट पूरी तरह से पर्वतीय और  चार जिलों बागेश्‍वर, चंपावत, पिथौरागढ़ और अल्‍मोड़ा, में फैली हुई संसदीय सीट है l परिसीमन के बाद अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ संसदीय सीट के अंतर्गत 14 विधानसभा क्षेत्र आते हैं l इस संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाला पूरा इलाका चीन और नेपाल के साथ-साथ गढ़वाल सीमा से सटा हुआ है l इस संसदीय क्षेत्र में भले ही चार जिले आते हैं, परंतु माना ये जाता है कि मतदाताओं का मिजाज लगभग एक जैसा ही रहता है और रास्ट्रीय मुद्दे यहाँ ज्यादा हावी रहते हैं l

 

भौगोलिक पृष्ठभूमि

धारचूला, डीडीहाट, पिथौरागढ़, गंगोलीहाट , कापकोट, बागेश्वर , द्वाराहाट, सल्ट, रानीखेत, सोमेश्वर , अल्मोड़ा, जागेश्वर, लोहाघाट और चम्पावत विधानसभा क्षेत्र अल्‍मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा सीट के अंतर्गत आते हैं l इस क्षेत्र को राजा बालो कल्याण चंद ने 1568 में बसाया था। महाभारत के समय से ही यहां की पहाड़ियों और आसपास के क्षेत्रों में मानव बस्तियों जिक्र मिलता है। यह क्षेत्र चंदवंशीय राजाओं की राजधानी था। इस धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी में बेहद प्राचीन और महत्वपूर्ण मंदिर हैं। इनमें गोलू देवता, नंदा देवी मंदिर, बानडी देवी मंदिर, कटारमल सूर्य मंदिर, गणनाथ मंदिर, बिनसर महादेव मंदिर, जागेश्वेर धाम और कसार देवी मंदिर प्रमुख हैं।

 

राजनीतिक पृष्ठभूमि

 

अल्‍मोड़ा पिथौरागढ़ लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैl  1957 में यह संसदीय क्षेत्र पहली बार अस्तित्व में आया। लम्बे समय तक इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा लेकिन दूसरे उत्तर भारतीय राज्यों की तरह कांग्रेस की ज़मीन प्रदेश में भी खिसकने लगी और अल्मोड़ा सीट किसी भी अपवाद का हिस्सा नहीं बनी l 1957 में कांग्रेस के जंग बहादुर बिष्ट को इस सीट पर जीत मिली थी l सन् 1971 तक के पांच चुनावों में लगातार कांग्रेस को इस सीट से जीत हासिल हुईl 1977 में पहली बार जनता पार्टी के मुरली मनोहर जोशी को इस सीट से जीत मिलीl इसके बाद फिर इस सीट पर कांग्रेस ने वापसी कर ली l 1980 से 1991 के बीच हुई 3 बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हरीश रावत को इस सीट से जीत मिली । हालांकि वर्ष 1991 से यह सीट भाजपा के खाते में चली गई। भाजपा के जीवन शर्मा एक बार और बची सिंह रावत तीन बार यहां के सांसद चुने गए। क्षेत्र में राष्‍ट्रीय दलों का ही बोलबाला है। संसदीय क्षेत्र में केवल एक बार क्षेत्रीय दल उक्रांद ने जबरदस्‍त चुनौती दी थी।  सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के बाद भी भाजपा और कांग्रेस के बीच शुरूआती दौर पर बराबर की टक्कर रही, वर्ष 2009 में कांग्रेस के प्रदीप टम्‍टा सांसद चुने गए तो वर्ष 2014 से भाजपा के अजय टम्‍टा यहाँ से दिल्ली पहुंचे। लेकिन 2019 बीजेपी ने कांग्रेस की राजनीतिक ज़मीन पूरी तरह खिसका दी । 2019 में भाजपा के अजय टम्टा ने कुल मतदान का 65.5 प्रतिशत वोट प्राप्त कर रिकॉर्ड कायम किया। कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टम्टा 31.2 प्रतिशत वोट ही ला सके। अब एक बार फिर प्रदीप टम्टा और अजय टम्टा आमने सामने हैं l

 

 

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