ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (केआईआईटी) हाल ही के दिनों में चर्चा में रही है। इस बीच, ओडिशा के कलिंग औद्योगिक प्रौद्योगिकी संस्थान (केआईआईटी) के संस्थापक अच्युत सामंत सहित संस्थान के वरिष्ठ अधिकारी शुक्रवार को राज्य सरकार की उच्च स्तरीय समिति के समक्ष पेश हुए। समित नेपाली की एक इंजीनियरिंग छात्र की कथित आत्महत्या और उसके बाद पड़ोसी देश के छात्रों पर हुए हमले की जांच कर रही है। पूर्व बीजद सांसद सामंत शाम 6:30 बजे निर्धारित अपनी सुनवाई से पूर्व राज्य अतिथि गृह पहुंचे। एक दिन पहले उन्होंने इस घटना के लिए नेपाली छात्रों के अभिभावकों से माफी मांगी थी। इससे पहले दिन में विधानसभा में कांग्रेस विधायकों ने केआईआईटी मामले के लिए सामंत को जिम्मेदार ठहराते हुए उनकी गिरफ्तारी की मांग की थी। केआईआईटी से बीटेक की तीसरे साल की छात्रा प्रकृति लामसाल (20) का कैंपस में ही स्थित हॉस्टल में शव मिला था। बताया जाता है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इसके बाद प्रकृति के माता-पिता को उसके निधन की जानकारी दी और उसकी मौत को आत्महत्या बताया। इस घटना के बाद यूनिवर्सिटी में तनाव की स्थिति पैदा हो गई।
नेपाली छात्रा की मौत की खबर सामने आते ही कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी में तनाव की स्थिति पैदा हो गई। यहां बड़े स्तर पर स्टूडेंट्स ने प्रदर्शन शुरू कर दिए।
नेपाल की छात्रा की मौत के मामले में जब यूनिवर्सिटी प्रशासन पर शिकायत के बावजूद आरोपी छात्रों पर कार्रवाई न होने की बात सामने आई तो यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने केआईआईटी के बाहर जबरदस्त प्रदर्शन किया। इनमें बड़ी संख्या नेपाल के छात्रों की रही, जिन्होंने अपनी सुरक्षा का मसला उठाया। इस बीच केआईआईटी प्रशासन ने नाराज विदेशी छात्रों से बातचीत की कोशिश की। हालांकि, इससे स्थिति नियंत्रण में नहीं आई। बताया जाता है कि इस दौरान यूनिवर्सिटी के कुछ अधिकारियों ने प्रदर्शनकारी नेपाली छात्रों से अभद्र व्यवहार किया और उन्हें अपशब्द कहे। इतना ही नहीं यूनिवर्सिटी के सिक्योरिटी में लगे कर्मियों ने भी इन स्टूडेंट्स के साथ बलप्रयोग किया। इस घटना के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल भी हो गए। अमर उजाला इन वीडियोज की पुष्टि नहीं करता। स्थिति नियंत्रण में न आते देख यूनिवर्सिटी प्रशासन ने नेपाली स्टूडेंट्स को वापस नेपाल भेजने का फैसला किया। रिपोर्ट्स की मानें तो यूनिवर्सिटी का यह फैसला उल्टा पड़ गया। दरअसल, जल्दबाजी में लिए गए इस फैसले के तहत नेपाली स्टूडेंट्स के लिए यूनिवर्सिटी को अनिश्चितकाल तक बंद कर दिया गया। इतना ही नहीं यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले करीब 1000 से ज्यादा नेपाली छात्र-छात्राओं को बिना उनसे पूछे उनके घरों के लिए रवाना किया जाने लगा।
यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उनकी सुरक्षा सुनिश्चित किए बिना ही उन्हें बसों में बिठाकर कटक रेलवे स्टेशन रवाना कर दिया गया, जो कि यूनिवर्सिटी से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके बाद उन्हें रेलवे स्टेशन पर अपने हाल पर छोड़ दिया गया। कई नेपाली छात्र-छात्राओं के पास इस दौरान घर जाने के लिए ट्रेन टिकट तक नहीं था। एक छात्र ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया था कि उनकी परीक्षाएं 28 फरवरी से होनी हैं, लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उन्हें हॉस्टल खाली करने के लिए कह दिया और रेलवे स्टेशन तक छुड़वा दिया। कुछ छात्रों ने दावा किया कि उनके पास खाने और पीने का सामान खरीदने तक के पैसे नहीं थे।