अमिताभ बच्चन को उनका नाम दिया था कवि सुमित्रानंदन पंत नेl कहानी बेहद दिलचस्प हैl दरअसल सुमित्रानंदन पन्त और अमिताभ बच्चन के पिता और महान कवि हरिवंश राय बच्चन अच्छे मित्र थे l मित्रों का एक दूसरे के घर आना-जाना लगा रहता था l अमिताभ बचपन को उनकी मां तेजी बच्चन मुन्ना कहकर बुलाया करतीं थीं, वहीँ पिता हरिवंश राय बच्चन ने अपने पुत्र का नाम इंक़लाब रखा था। एक दिन सुमित्रानंदन पंत का उनके घर आना हुआ। नन्हे बच्चन उनके सामने आए तो सुमित्रानंदन पंत ने महज़ उत्सुकतावश अपने मित्र से बालक का नाम पूछा, जवाब मिला इंक़लाब, पंत को नाम कुछ जमा नहीं और पलभर में हरिवंश राय बच्चन से कहा कि बालक को अमिताभ नाम से पुकारो। अमिताभ शब्द का अर्थ होता है हमेशा चमकते रहने वाला यानि जिसकी कभी आभा ख़त्म नहीं होती है। सुमित्रा नंदन का दिया हुआ नाम अमिताभ बच्चन के जीवन में आज पूरी तरह से सार्थक है l
सुमित्रानंदन पन्त की जड़ें देव भूमि उत्तराखंड से जुड़ी हुई हैं l उनका जन्म मिनी स्विट्ज़रलैंड कहे जाने वाले कौसानी में हुआ था l चलिए जानते हैं क्या है महान कवि सुमित्रानंदन पन्त का जीवन परिचय l
क्या था बचपन में नाम
सुमित्रानंदन पंत का जन्म आज के उत्तराखण्ड के बागेश्वर ज़िले के कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ l उन्हें जन्म देते ही उनकी माँ का देहांत हो गया था l जन्म के समय उनका नाम रखा गया था गोसाईं दत्त l प्रकृति प्रेमी गोसाईं दत्त अपने पिता गंगादत्त पंत की आठवीं संतान थे। 1910 में शिक्षा प्राप्त करने के लिए अल्मोड़ा के गवर्नमेंट हाईस्कूल में दाखिला लिया और इसी दौरान उन्होंने अपना नाम नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन रख लिया। इसके बाद 1918 में वह अपने मँझले भाई के साथ काशी के क्वींस कॉलेज में पढ़ने गए। वहाँ से हाईस्कूल करने के बाद सुमित्राननंद पन्त ने इलाहाबाद के म्योर कालेज से आगे पढ़ाई की l
कैसे हुआ साहित्य जगत में आगमन
वैसे तो उन्होंने मात्र 7 वर्ष की आयु से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था, बालपन में भी लिखी गई कविताओं का आधार प्रकृति के इर्द-गिर्द की रहा l
लेकिन उनके कलम ने रफ़्तार पकड़ी प्रयाग में उच्च शिक्षा के दौरान l 1921 के असहयोग आंदोलन में महात्मा गाँधी के बहिष्कार के आह्वान पर उन्होंने महाविद्यालय छोड़ दिया और हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अँग्रेज़ी भाषा-साहित्य की सेवा में खुद को झोंक दिया l
साहित्य यात्रा
मुख्य रूप से उनका रचनाकाल 1916 से 1977 तक लगभग 60 वर्षों का रहा l 1916-35 के दौरान वे छायावादी काव्यों की रचना में लीन रहें, जिस दौरान ‘वीणा’, ‘ग्रंथि’, ‘पल्लव’, ‘गुंजन’ तथा ‘ज्योत्स्ना’ आदि संग्रह प्रकाशित हुए। इसके बाद उनका रुझान मार्क्स और फ़्रायड के विचारों की ओर मुड़ा और इस दौरान उन्होंने अपनी रचनाओं में एक आम आदमी की पहचान और संघर्षों को शब्दों में पिरोया l उनकी साहित्य यात्रा के इस दौर में उनके ‘युगांत’, ‘गुण-वाणी’ और ‘ग्राम्या’ संग्रह प्रकाशित हुए। उनके जीवन में अरविंद-दर्शन एक बड़ा परिवर्तन ले कर आया और इसके साथ भी उनकी काव्य रचनाओं में भी नए स्वर निकालने लगे l ‘स्वर्ण-धूलि’, ‘अतिमा’, ‘रजत शिखर’ और ‘लोकायतन’ इस दौरान प्रकाशित संग्रह हैं, जहाँ पंत अध्यातमिक रौशनी से सराबोर प्रतीत हो रहे हैं l
‘युगांतर’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘कला और बूढ़ा चाँद’, ‘सत्यकाम’, ‘मुक्ति यज्ञ’, ‘तारापथ’, ‘मानसी’, ‘युगवाणी’, ‘उत्तरा’, ‘रजतशिखर’, ‘शिल्पी’, ‘सौवर्ण’, ‘पतझड़’, ‘अवगुंठित’, ‘मेघनाद वध’ आदि उनके अन्य प्रमुख काव्य-संग्रह हैं। ‘चिदंबरा’ संग्रह का प्रकाशन 1958 में हुआ जिसमें 1937 से 1950 तक की रचनाओं का संचयन है। कविताओं के अतिरिक्त उन्होंने नाटक, उपन्यास, निबंध और अनुवाद में भी योगदान किया है।
उन्हें 1960 में उन्हें ‘कला और बूढ़ा चाँद’ काव्य-संग्रह के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से और 1968 में ‘चिदंबरा’ काव्य-संग्रह के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया और उनपर डाक टिकट जारी किया।
आज भी उत्तरखंड से सुमित्रानंदन पन्त की जड़ें जुड़ी हुई हैं l कौसानी गाँव में मौजूद उनके पैतृक घर को ‘सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ नामक संग्रहालय में तब्दील किया गया है, जहाँ उनकी व्यक्तिगत चीज़ों, प्रशस्तिपत्र, विभिन्न संग्रहों की पांडुलिपियों को सुरक्षित रखा गया है।