नई दिल्ली। स्वास्थ्य क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। केंद्रीय समिति की सिफारिशों के आधार पर महानगरों तक सीमित “ग्रीन हॉस्पिटल” पहल को अब छोटे शहरों और जिलों तक ले जाने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशालय (DGHS) ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं।
क्या है हरित अस्पताल की अवधारणा?
ग्रीन हॉस्पिटल यानी ऐसे अस्पताल, जहाँ पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना आधुनिक चिकित्सा सेवाएँ दी जाएँ। इनमें सौर ऊर्जा, वर्षा जल संचयन, ऊर्जा-दक्ष उपकरण, कचरा प्रबंधन, हरित निर्माण सामग्री और प्रदूषण नियंत्रण को प्राथमिकता दी जाती है। साथ ही, मरीजों और स्टाफ के लिए बेहतर वायु गुणवत्ता और स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित किया जाता है।
समिति की सिफारिशें
केंद्रीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश के अधिकांश छोटे और मझोले शहरों के अस्पतालों में ऊर्जा खपत अधिक है और कचरा प्रबंधन की स्थिति संतोषजनक नहीं है। ऐसे में, ग्रीन हॉस्पिटल मॉडल को केवल दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे महानगरों तक सीमित न रखकर पूरे देश में लागू करना होगा। समिति ने राज्यों को “स्थानीय स्तर पर पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने और धीरे-धीरे सभी जिला अस्पतालों को हरित मानकों से लैस करने” की सलाह दी है।
DGHS का आदेश
DGHS ने राज्यों से कहा है कि वे आने वाले 6 महीने में अपने-अपने क्षेत्र के प्रमुख अस्पतालों का मूल्यांकन करें और ग्रीन हॉस्पिटल के मानकों को अपनाने की कार्ययोजना बनाएं। आदेश में यह भी कहा गया है कि नए बनने वाले अस्पतालों की डिजाइन और निर्माण में ग्रीन बिल्डिंग कोड को अनिवार्य किया जाए।
मरीजों और स्वास्थ्य प्रणाली को लाभ
विशेषज्ञों के अनुसार, ग्रीन हॉस्पिटल न केवल पर्यावरण के अनुकूल होंगे, बल्कि मरीजों के लिए भी अधिक सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराएंगे। ऊर्जा और संसाधनों की बचत से अस्पतालों के परिचालन खर्च में कमी आएगी, जिससे स्वास्थ्य सेवाएँ किफायती बन सकेंगी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगा भारत का मान
नीति आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है कि इस पहल से भारत वैश्विक स्तर पर “ग्रीन हेल्थकेयर” मॉडल प्रस्तुत कर सकेगा। यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के अनुरूप भी है।