Saturday, June 28, 2025

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पुरी में शुरू हुई जगन्नाथ रथ यात्रा, भक्तों का उमड़ा जनसैलाब

ओडिशा के पुरी में विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का शुभारंभ हो गया है। भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को विशाल रथों पर बैठाकर गुंडिचा मंदिर (मौसी का घर) तक ले जाया जा रहा है। इस 12 दिवसीय यात्रा के पहले दिन पुरी में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है, जो इस पावन अवसर पर प्रभु के दर्शन के लिए पहुंचे हैं।

रथ यात्रा से पहले ‘स्नान पूर्णिमा’ पर पारंपरिक रूप से भगवान बीमार पड़ते हैं और फिर ‘नबजौबन दर्शन’ के बाद वे यात्रा के लिए तैयार होते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच आते हैं और उन्हें दर्शन देते हैं।

इस ऐतिहासिक उत्सव में देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचे हैं। अमेरिका में रहने वाली इक्वाडोर मूल की एक महिला भक्त ने कहा कि वह पहली बार पुरी आई हैं और भगवान जगन्नाथ के दर्शन करना उनके लिए सपना पूरा होने जैसा है।

पुरी से सांसद संबित पात्रा ने कहा कि यह परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है और भगवान जगन्नाथ को ब्रह्मांड का संचालन करते हुए यहीं निवास करते हुए माना जाता है।

केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने रथ यात्रा की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह यात्रा सामाजिक समावेश, भाईचारे और सनातन संस्कृति के मूल्यों की प्रतीक है। उन्होंने कामना की कि महाप्रभु का आशीर्वाद देश और दुनिया में शांति और प्रगति लाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा:
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पावन अवसर पर सभी देशवासियों को मेरी ढेरों शुभकामनाएं। श्रद्धा और भक्ति का यह उत्सव जीवन में सुख, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य लेकर आए। जय जगन्नाथ!”

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी इस अवसर पर देशवासियों को बधाई दी। उन्होंने अपने संदेश में कहा कि रथ यात्रा में भगवान बलभद्र, महाप्रभु जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और चक्रराज सुदर्शन के दर्शन करने से भक्त दिव्य अनुभूति प्राप्त करते हैं। उन्होंने प्रार्थना की कि रथ यात्रा का यह पुण्य अवसर दुनिया में शांति, स्नेह और सौहार्द का वातावरण बनाए।

यह रथ यात्रा 8 जुलाई 2025 को ‘नीलाद्रि विजय’ के साथ समाप्त होगी, जब भगवान पुनः अपने मूल मंदिर लौटेंगे। आयोजन के दौरान कई विशेष अनुष्ठान, सांस्कृतिक कार्यक्रम और धार्मिक विधियां सम्पन्न की जाएंगी। महीनों पहले से शुरू हुई तैयारियों का यह पर्व अब अपने चरम पर है — भक्ति, संस्कृति और उत्साह का जीवंत संगम।

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