भारत का संविधान एक सामाजिक दस्तावेज है, जो यह दिखावा नहीं करता कि सभी लोग बराबर हैं, बल्कि यह साहस करता है कि वह सत्ता को फिर से संतुलित करे और गरिमा को बहाल करे। यह बात मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने ऑक्सफोर्ड यूनियन में अपने संबोधन के दौरान कही।उन्होंने संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर की भूमिका पर भी चर्चा की और बताया कि कैसे आंबेडकर ने दूरदर्शिता के साथ संविधान में पर्याप्त सुरक्षा और सकारात्मक प्रावधानों, खासकर प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर की भूमिका पर भी चर्चा की और बताया कि कैसे आंबेडकर ने दूरदर्शिता के साथ संविधान में पर्याप्त सुरक्षा और सकारात्मक प्रावधानों, खासकर प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सीजेआई गवई ने कहा, कई दशक पहले भारत में लाखों लोगों को ‘अछूत’ कहा जाता था। उन्हें यह बताया जाता था कि वे अशुद्ध हैं, वे इस समाज का हिस्सा नहीं हैं और वे खुद के लिए बोल भी नहीं सकते। लेकिन आज हम यहां हैं। आज उन्हीं लोगों में से एक व्यक्ति (खुद गवई) देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर बैठकर खुलकर बोल रहा है। यही भारत के संविधान ने किया। उसने भारत के लोगों से कहा कि वे इस देश के हैं, वे खुद के लिए बोल सकते हैं औ समाज व सरकार के हर क्षेत्र में उनकी बराबरी की जगह है।
उन्होंने कहा, संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज या सियासी ढांचा नहीं है। यह एक भावना है। जीवनरेखा है और स्याही से लिखी हुई एक शांत क्रांति है। मेरी अपनी यात्रा में (नगरपालिका के स्कूल से सीजेआई बनने तक) यह मेरे लिए मार्गदर्शन की एक ताकत रही है। जस्टिस गवई ने कहा, संविधान एक सामाजिक दस्तावेज है, जो जाति, गरीबी, बहिष्कार और अन्याय की कठोर सच्चाई से आंखें नहीं चुराता। यह दिखावा नहीं करता कि सभी बराबर हैं, बल्कि यह साहस करतरा है कि वह सत्ता को फिर से देखे, संतुलित करे और गरिमा को बहाल करे।