गुजरात विधानसभा के मानसून सत्र के आखिरी दिन शुक्रवार को कांग्रेस विधायक दल के नेता अमित चावड़ा ने राज्य में ‘जाति आधारित जनगणना’ की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया। इसमें पार्टी ने कहा कि वंचित जातियों की पहचान से नीति बनाने और संसाधनों के विवेकपूर्ण आवंटन में मदद मिलेगी। हालांकि, बीजेपी सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। सत्तारूढ़ दल ने दावा किया कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जाति जनगणना के विचार को खारिज कर दिया था और कहा था कि इससे समाज में भेदभाव पैदा होगा। विपक्ष के नेता चावड़ा के प्रस्ताव पर राज्य के विधायी और संसदीय मामलों के मंत्री रुशिकेश पटेल ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने जाति आधारित जनगणना के प्रस्ताव को सत्ता हासिल करने के लिए कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा सक्रिय किया गया एक ‘टूलकिट’ करार दिया। पटेल ने प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जाति जनगणना कराना केंद्र सरकार के दायरे में आता है, राज्य के नहीं। विपक्ष के नेता चावड़ा ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि गुजरात में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए जाति-जनगणना जरूरी है। उन्होंने कहा, ‘राज्य में सामाजिक-आर्थिक असमानता और जाति-आधारित भेदभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, जो हम सभी के लिए चिंता का विषय है। कुछ वर्गों या क्षेत्रों को विकास का अधिकतम लाभ मिल रहा है। सरकारी नौकरियों, उद्योगों में असमानता, शैक्षणिक संस्थानों और संसाधनों का आवंटन स्पष्ट है।’
चावड़ा ने कहा कि राज्य में जाति आधारित जनगणना के बिना संसाधनों का न्यायिक और न्यायसंगत वितरण संभव नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘राज्य के लोगों के बीच आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए जातियों के बीच सामाजिक असमानता की पहचान करना आवश्यक है। वंचित जातियों या समूहों की पहचान से राज्य की नीति तैयार करने, संसाधनों के विवेकपूर्ण आवंटन और योजना बनाने में मदद मिलेगी।’
कांग्रेस विधायक चावड़ा ने कहा, ‘1951 से 2011 तक स्वतंत्र भारत की प्रत्येक जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आंकड़ों की गणना की गई, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग और अन्य जातियों के आंकड़े एकत्र नहीं किए गए। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में परिवारों की आर्थिक स्थिति के आंकड़े प्राप्त करना भी आवश्यक है।