बांग्लादेश में महीनों से सुलग रही आरक्षण और सरकार विरोधी चिंगारी सोमवार को भीषण आग के रूप में फूटी। 300 लोगों की मौत के बाद देशभर से प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को राजधानी ढाका तक चीनी कम्युनिस्ट क्रांति के अंदाज में लॉन्ग मार्च का एलान किया और सेना भी उग्र भीड़ को संभाल नहीं पाई। नतीजा यह रहा कि करीब डेढ़ दशक से बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज शेख हसीना को जान बचाकर देश से भागना पड़ा है। 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी दिलाने की लड़ाई में शामिल क्रांतिकारियों के परिवारों को सरकारी नौकरियों में दिए जा रहे आरक्षण को खत्म करने की मांग के साथ पिछले महीने शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन के बाद बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर पहले ही अंतरिम रोक लगा दी थी। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रदर्शनकारी आखिर फिर से इतने हिंसक होकर सड़कों पर क्यों उतर आए। असल में हिंसा की यह नई लहर तब शुरू हुई जब प्रदर्शनकारियों ने असहयोग का आह्वान किया, जिसमें लोगों से कर या बिजली बिल का भुगतान न करने और रविवार को काम पर न आने का आग्रह किया गया। सोमवार को जब कार्यालय, बैंक और कारखाने खुले, तो प्रदर्शनकारियों ने लोगों को काम पर जाने से रोकना शुरू कर दिया, इस बीच सेना ने प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए गोलियां चलानी शुरू कर दी। प्रदर्शनकारियों ने एक दिन पहले लगाए गए कर्फ्यू की परवाह किए बिना ढाका में प्रधानमंत्री आवास पर धावा बोल दिया। इसके अलावा प्रदर्शनकारियों ने ढाका के शाहबाग इलाके में स्थित एक प्रमुख सार्वजनिक अस्पताल बंगबंधु शेख मुजीब मेडिकल यूनिवर्सिटी पर हमला किया है। प्रदर्शनकारियों ने जगह-जगह सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यालयों व वाहनों में भी आग लगा दी।