Thursday, November 21, 2024

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वीर सिपाही शहीद केसरी चंद

उत्तराखंड देव भूमि के साथ वीरों की भी भूमि है l  उन्हीं वीरों में से केसरी चन्द का नाम पूरे सम्मान और जोश के साथ लिया जाता है l  जंग-ए-आज़ादी के वीर सिपाही शहीद केसरी चंद वो वीर हैं जिन्होंने देश की खातिर अग्रेंजी हकूमत से लड़ते हुए फांसी का फंदा चूमा लिया l

अमर शहीद वीर केसरी चन्द की कहानी शुरू होती है जौनसार की ज़मीन से l जन्म हुआ उनका 1 नवम्बर 1920 को जौनसार के क्यावा गांव के एक साधारण परिवार में l  पिता का नाम पं शिवदत्त था l मात्र 6 साल की आयु में उन्होंने अपनी माता जी को खो दिया l उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय हाईस्कूल में की l आगे की पढ़ाई के लिए केसरी चंद देहरादून के डीएवी इंटर कालेज गए, लेकिन आज़ादी के लिए हो रहे संघर्ष ने कई नौजवानों की तरह उन्हें भी अपनी ओर खींच लिया l उस समय देश में आज़ादी की लड़ाई में युवा बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे l केसरी चंद पढ़ाई के साथ कांग्रेस की सभाओं और कार्यक्रमों में भाग लेने लगे l  उनके भीतर  देशप्रेम की भावना और नेतृत्व के गुण इन सभाओं में जाने से एक आकार लेने लगे और 10 अप्रैल 1941 को बीच में ही पढ़ाई छोड़कर वह रायल इडिया आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए। यहीं से शुरू हुआ आज़ादी के इस मतवाले का नया जीवन l

कुछ उसी समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर आज़ाद हिंद फौज का गठन हुआ और देश को स्वतंत्र कराने का सपना लिए केसरी चंद भी आज़ादी के दीवानों की टोली में शामिल हो गए। वर्ष 1944 में आज़ाद हिंद फौज मणिपुर की राजधानी इम्फाल पहुंची और यहाँ एक  पुल उड़ाने के प्रयास में ब्रिटिश फौज ने उन्हें पकड़ लिया और  उन्हें बन्दी बनाकर दिल्ली की जिला जेल भेज दिया l  उसी साल अक्टूबर में अंग्रेजी हुकूमत ने केसरी चंद पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया और कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए उनकी फांसी का फ़रमान सुना दिया । जब उन्हें यह सजा सुनाई गई तब उनकी उम्र मात्र 24 वर्ष 6 माह थी l  3 मई 1945 को देश के इस वीर सिपाही ने हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया । इतनी छोटी सी उम्र में उनके अंदर इतनी चेतना थी कि वे अंग्रेजी हुकूमत के सामने झुके नहीं  और देश के खातिर हँसते हँसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए l

 

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