Thursday, March 20, 2025

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हर साल समुद्रों से निकाली जा रही 800 करोड़ टन तक रेत

दुनिया में रेत खनन के बढ़ते व्यापार से समुद्र भी सुरक्षित नहीं हैं, जिन पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। यहां तक कि संरक्षित क्षेत्रों पर भी इसका असर पड़ रहा है और इस वजह से समुद्री जीवन को बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है। समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को हो रहे नुकसान के बावजूद  इस समस्या को अनदेखा किया जा रहा है। हर साल 800 करोड़ टन तक रेत समुद्रों से निकाली जा रही है, जो प्रतिदिन रेत से भरे जाने वाले दस लाख ट्रकों के बराबर है। यह जानकारी एक अध्ययन में सामने आई है। रेत खनन के समुद्री जीवन पर बढ़ते प्रभावों को उजागर करते हुए एलिकांटे विवि, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी गेन्ट, जिनेवा विवि और मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ताओं ने एक नया अध्ययन किया है जिसके नतीजे जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि रेत और बजरी उन संसाधनों में शामिल हैं जिनका सबसे ज्यादा अधिक दोहन हुआ है। 1970 से 2019 के बीच प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तीन गुना से भी ज्यादा हो गया है। इसका मुख्य कारण रेत और अन्य निर्माण सामग्री के खनन में होने वाली भारी वृद्धि है, जिन्हें एग्रीगेट्स के नाम से जाना जाता है। संसाधनों के दोहन में हो रही यह वृद्धि जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ प्रजातियों को भी नुकसान पहुंचा रही है साथ ही दुनिया में जल संकट को भी बढ़ावा दे रही है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) का भी कहना है कि पानी के बाद रेत दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा उपयोग की जाने वाली वस्तु है। समुद्री रेत, निर्माण का एक मुख्य घटक है जिसके भण्डार बड़ी तेजी से कम हो रहे हैं।अध्ययन के अनुसार, एक तरह से रेत दुनिया भर में मानव विकास का आधार है। यह कंक्रीट, डामर, कांच और इलेक्ट्रॉनिक्स का एक प्रमुख घटक है। अपेक्षाकृत सस्ता होने के साथ-साथ इसका दोहन आसान है। गहरे समुद्र में खनन या महत्वपूर्ण खनिजों के विपरीत, समुद्रों में होते रेत खनन पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। यह मछली पकड़ने के बाद इंसानों द्वारा की जाने वाली दूसरी सबसे आम तटीय गतिविधि है और इसे अक्सर हल्के में लिया जाता है। रेत खनन से न केवल तटीय क्षेत्र कटाव का सामना कर रहे हैं बल्कि इससे समुद्री जीवों के आवास को भी बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है। यह आक्रामक प्रजातियों के प्रसार में सहायक हो रहा है और इसकी वजह से मत्स्य पालन में भी कमी आ रही है। रेत खनन से पानी धुंधला हो जाता है और यह समुद्री घास और मूंगे को नष्ट कर देता है। इसकी वजह से समुद्री आवास खंडित हो जाते हैं। इसके कारण 500 से ज्यादा समुद्री प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। इतना ही नहीं यह लहरों के पैटर्न में भी बदलाव की वजह बन रहा है। इसी तरह खनन, अन्य तरीकों से भी समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचा रहा है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि रेत खनन से समुद्री जीवन और विविधता को नुकसान पहुंच रहा है। रेत न केवल इंसानों बल्कि प्रकृति के लिए भी बेहद आवश्यक है। ऐसे में इसे संतुलित किए जाने की आवश्यकता है।रेत प्रकृति और मानव विकास दोनों के लिए आवश्यक है। यह न केवल निर्माण बल्कि प्राकृतिक दुनिया को भी आकार देती है। इसका दोहन एक वैश्विक चुनौती बन चुका है। मेटाकपलिंग फ्रेमवर्क जैसे उपकरण जटिलता को सुलझाने के लिए आवश्यक हैं। यह न केवल रेत खनन के स्थानों बल्कि परिवहन मार्गों और जिन स्थानों में निर्माण के लिए रेत का उपयोग किया जा रहा है वहां भी इनके छिपे प्रभावों को उजागर करने में मदद करते हैं। मोटेतौर मेटाकपलिंग अध्ययन करने का एक ऐसा नया तरीका है जो बताता है कि किस तरह से मनुष्य और प्रकृति परस्पर क्रिया करते हैं।

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