मंगोलिया में सत्ता संघर्ष के बीच प्रधानमंत्री गोंबोजाव जंदंशातर ने महज चार महीने के भीतर पद से इस्तीफा दे दिया है। उनकी बर्खास्तगी शुक्रवार को संसद में विश्वास मत के दौरान हुई, जिसमें 126 सदस्यीय संसद में से 111 ने उनके खिलाफ वोट किया। इससे पहले उनके पूर्ववर्ती लुव्सन्नमस्राई ओयुन-एर्डेने भी भ्रष्टाचार के आरोपों और सार्वजनिक विरोधों के कारण जून में इस्तीफा दे चुके थे।
जंदंशातर, जो पूर्व विदेश मंत्री और संसदीय अध्यक्ष रह चुके हैं, जून में प्रधानमंत्री बने थे। उनकी बर्खास्तगी मुख्य रूप से सत्तारूढ़ पार्टी, मंगोलियाई पीपुल्स पार्टी (एमपीपी) में चल रहे आंतरिक संघर्षों के कारण हुई है। संसद के अध्यक्ष अमरबयास्गलान दाश्जेगवे, जो जंदंशातर के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं, ने हाल ही में पार्टी नेतृत्व चुनाव में उन्हें हराया था। इसके बाद से दोनों नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी था।
जंदंशातर के समर्थकों ने अमरबयास्गलान पर कोयला उद्योग में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और इस मामले की जांच की मांग की। हालांकि, संसद में एक समिति ने उनकी बर्खास्तगी का विरोध किया था, लेकिन पूर्ण संसद ने समिति के निर्णय को नकारते हुए जंदंशातर को पद से हटा दिया। इस राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों, विशेषकर शिक्षकों और चिकित्सकों ने वेतन वृद्धि की मांग को लेकर हड़ताल शुरू कर दी है, जिससे सरकार के समक्ष नई चुनौतियाँ उत्पन्न हो गई हैं।
अब राष्ट्रपति उखना खुरेलसुख को नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति करनी होगी, जिसे संसद से अनुमोदन प्राप्त करना होगा। हालांकि, इस राजनीतिक अस्थिरता के कारण निवेशकों का विश्वास प्रभावित हो सकता है और आर्थिक नीतियों में निरंतरता पर सवाल उठ सकते हैं।
यह घटनाक्रम मंगोलिया की राजनीति में जारी उथल-पुथल और भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की बढ़ती जागरूकता को दर्शाता है। हालांकि, सत्ता परिवर्तन की गति और आंतरिक संघर्षों के कारण शासन की स्थिरता पर प्रश्नचिन्ह लगा है।





