पहलगाम आतंकी हमला मामले में पाकिस्तान से जारी तनातनी के बीच मोदी सरकार ने जाति गणना कराने का फैसला कर सभी को चौंका दिया है। हालांकि सरकारी सूत्र का कहना है कि यह फैसला अचानक नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। सरकार उचित समय का इंतजार कर रही थी, जिससे उसके विपक्ष के दबाव में न आने का संदेश जाए। जाति जनगणना के जरिये सरकार का इरादा महज हिंदुओं की ही नहीं बल्कि मुस्लिमों समेत अन्य धर्मों की जातियों की भी अलग-अलग संख्या और आंकड़ा एकत्रित करने के साथ आजादी के बाद धर्मांतरित हुए लोगों का आंकड़ा भी जुटाने का है। मोदी सरकार के इस फैसले को देश में मंडल-2 की सियासत की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। सभी दलों की निगाहें ओबीसी वोट बैंक को साधने पर है। जाहिर तौर पर श्रेय लेने की इस सियासी जंग के कारण भविष्य में ओबीसी ही नहीं बल्कि एससी-एसटी आरक्षण के अंदर कोटा बनाने की मांग तेज होगी। इनमें ओबीसी आरक्षण को विभिन्न श्रेणियों में बांटने के लिए सरकार के पास रोहिणी आयोग की रिपोर्ट का हथियार होगा तो एससी-एसटी आरक्षण को वर्गीकृत करने का फैसला सुप्रीम कोर्ट पहले ही सुना चुकी है। इसके इतर जाति गणना से पूर्व ही आरक्षण का दायरा बढ़ाने और निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने की मांग तेज हो रही है। सरकारी सूत्र ने कहा कि जातियों की गिनती महज बहुसंख्यक हिंदू समुदाय तक सीमित नहीं रहेगी। यह प्रक्रिया अन्य धर्मों के लिए भी अपनाई जाएगी। मुसलमानों में भी जातियां हैं, अगड़े, पिछड़े और दलित हैं। इसी आधार पर इनमें शामिल 36 जातियों को ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलता है। ऐसे में कोई यह नहीं कह सकता कि उसके यहां जाति नहीं है। दलित मानी जानी वाली जातियों को अरजाल कहा जाता है। पसमांदा जो पिछड़े मुसलमान में हैं, उनमें कुंजड़े, जुलाहे, धुनिया, कसाई, फकीर, मेहतर, धोबी, मनिहार, नाई जैसी कई जातियां हैं। इनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को जानने के लिए भी गणना जरूरी है।