ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज पर संसद की स्थायी समिति ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के तहत प्रदान किए जाने वाले काम के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 150 दिन करने समेत श्रमिकों के दैनिक पारिश्रमिक को कम से कम 400 रुपये निर्धारित करने की सिफारिश की है।
समिति ने सुझाव दिया है कि मनरेगा की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए एक स्वतंत्र सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। समिति ने उभरती चुनौतियों के मद्देनजर योजना को नया रूप देने पर भी जोर दिया है।
हाल ही में संपन्न बजट सत्र के अंतिम सप्ताह के दौरान संसद में पेश रिपोर्ट में स्थायी समिति ने योजना के लिए आवंटित राशि में ठहराव पर चिंता व्यक्त करते हुए सोशल ऑडिट पर भी जोर दिया है ताकि योजना के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया जा सके।
कांग्रेस सांसद सप्तगिरि शंकर उलाका की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि समिति का मानना है कि मनरेगा की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वेक्षण में श्रमिकों की संतुष्टि, वेतन में देरी, भागीदारी के रुझान और योजना में वित्तीय अनियमितताओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार, ‘समिति ने मनरेगा से जुड़े कार्यक्रम की कमियों के बारे में अहम जानकारी प्राप्त करने और मनरेगा की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए आवश्यक नीतिगत सुधारों को लागू करने के लिए देशभर में स्वतंत्र एवं पारदर्शी सर्वेक्षण की सिफारिश की है।’
समिति ने योजना में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि वर्तमान में 100 दिनों का रोजगार प्रदान करने का प्रविधान है, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों से दिनों की संख्या बढ़ाने की मांग की जा रही है। समिति ने कहा, ‘बदलते समय और उभरती चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए योजना में सुधार की आवश्यकता है। समिति मंत्रालय से उन विकल्पों पर विचार करने का आग्रह करती है, जिससे मनरेगा के तहत गारंटीकृत कार्य दिवसों की मौजूदा संख्या 100 दिनों से बढ़ाकर कम से कम 150 दिन की जा सके।’
समिति ने यह भी सिफारिश की कि सूखा राहत प्रविधान के तहत 150 दिनों की वर्तमान कार्य सीमा को बढ़ाकर 200 दिन किया जाना चाहिए। वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति के परिवारों के लिए मनरेगा के तहत 150 दिनों की मजदूरी प्रदान करने के निर्देश जारी किए गए हैं, वहीं कमजोर समुदायों के लोगों के लिए आय की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए वन अधिकार अधिनियम के तहत 150 दिन का काम देने की सीमा को बढ़ाकर 200 दिन किया जाना चाहिए। महंगाई के साथ मजदूरी का तालमेल नहीं होने पर चिंता व्यक्त करते हुए समिति ने कहा कि मनरेगा के तहत बुनियादी मजदूरी दरों को संशोधित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप हों और ग्रामीण श्रमिकों को सम्मानजनक पारिश्रमिक प्रदान करें। समिति ने कहा, ‘पारिश्रमिक के रूप में कम से कम 400 रुपये प्रतिदिन प्रदान किए जाने चाहिए क्योंकि वर्तमान दरें बुनियादी दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए भी अपर्याप्त हैं।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि मजदूरी भुगतान में लगातार देरी हो रही है और देरी से मिलने वाले वेतन के लिए मुआवजे की दर में वृद्धि की सिफारिश की गई है। समिति ने पाया कि पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार के लिए सोशल ऑडिट बढ़ाया जाना चाहिए और ग्रामीण विकास मंत्रालय से सोशल ऑडिट ‘कैलेंडर’ निर्धारित करने का आग्रह किया।