नई दिल्ली: भारत की नदियों में कभी प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले मीठे पानी के विशाल जीव अब तेजी से गायब हो रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा, ब्रह्मपुत्र और अन्य प्रमुख नदियों में रहने वाली कई प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी हैं। यह न केवल जैव विविधता के लिए गंभीर खतरा है, बल्कि नदी तंत्र और प्राकृतिक संपदाओं पर भी गहरा असर पड़ रहा है।
वन्यजीव वैज्ञानिकों के अनुसार, घड़ियाल, गंगा डॉल्फिन, महसीर जैसी प्रजातियों की संख्या पिछले दो दशकों में चिंताजनक स्तर तक घट चुकी है। इन प्रजातियों को नदी के पारिस्थितिकी तंत्र का ‘की-स्टोन स्पीशीज’ माना जाता है, जिनकी मौजूदगी से जल गुणवत्ता और जैविक संतुलन बना रहता है। इनका कम होना नदी के स्वास्थ्य के गिरते स्तर का बड़ा संकेत है।
विशेषज्ञ इसके प्रमुख कारणों में अनियंत्रित प्रदूषण, बांधों और बैराजों का निर्माण, अवैध शिकार, रेत खनन और जलवायु परिवर्तन से जलस्तर में आ रहे उतार-चढ़ाव को मानते हैं। गंगा और यमुना जैसी नदियों में बढ़ते औद्योगिक कचरे और सीवेज के प्रवाह ने जलचर जीवों के आवास को बुरी तरह प्रभावित किया है। वहीं, तेज रफ्तार नावें और बढ़ते पर्यटन से ध्वनि प्रदूषण भी इन संवेदनशील जीवों के लिए संकट खड़ा कर रहा है।
हालांकि सरकार और विभिन्न एजेंसियों द्वारा संरक्षण प्रयास किए जा रहे हैं। गंगा डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव का दर्जा देने, घड़ियाल संरक्षण केंद्रों की स्थापना और नदी सफाई मिशन जैसे कदम इस दिशा में शामिल हैं। इसके बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा प्रयास पर्याप्त नहीं हैं और संरक्षण के लिए सभी हितधारकों को मिलकर ज्यादा ठोस कदम उठाने होंगे।
पर्यावरणविद चेतावनी दे रहे हैं कि यदि अब भी स्थिति नहीं संभाली गई तो भारत अपनी नदियों की कीमती जैव संपदा खो देगा, जिसका असर करोड़ों लोगों की आजीविका और पेयजल आपूर्ति तक पर पड़ सकता है। इसलिए, नदियों के संरक्षण और प्राकृतिक पारिस्थितिकी को फिर से जीवंत करने की दिशा में जल्द और कारगर कार्रवाई बेहद जरूरी हो गई है।





