नई दिल्ली। देश में दशकों से फैले नक्सलवाद के अंत की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में देशवासियों को भरोसा दिलाया है कि 31 मार्च 2026 से पहले भारत नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा। केंद्र सरकार के इस आत्मविश्वास के पीछे सुरक्षा बलों की सटीक रणनीति और लगातार हो रही सफल कार्रवाई है, जिसका असर अब नक्सलियों के बीच साफ दिखने लगा है — वे बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण कर रहे हैं।
नक्सलियों में आत्मसमर्पण की लहर
पिछले कुछ हफ्तों में ही छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और ओडिशा जैसे नक्सल प्रभावित राज्यों में सैकड़ों नक्सलियों ने हथियार डाल दिए हैं। अकेले छत्तीसगढ़ में शुक्रवार को 208 नक्सलियों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया — इनमें 98 पुरुष और 110 महिलाएं शामिल थीं। सभी ने 153 हथियार सुरक्षा बलों को सौंपे। इससे पहले 170 नक्सलियों ने हथियार डाले थे, जबकि बाद में 27 और माओवादी मुख्यधारा में लौट आए। दो दिन पहले महाराष्ट्र में 61 नक्सलियों ने भी सरेंडर किया।
गौरतलब है कि 2024 में ही छत्तीसगढ़ में 2100 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जबकि 1785 को गिरफ्तार किया गया और 477 को सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में मार गिराया। अब आत्मसमर्पण करने वालों की संख्या गिरफ्तारी और मुठभेड़ों से कहीं आगे निकल चुकी है — यह बदलाव माओवाद के कमजोर होते ढांचे की गवाही दे रहा है।
शीर्ष माओवादी नेता भी हथियार डाल रहे
सरेंडर करने वालों में कई सीनियर माओवादी ऑपरेटिव शामिल हैं। इनमें केंद्रीय समिति सदस्य सतीश उर्फ टी. वासुदेव राव (CCM), एसजेडसीएम रानीता, डीवीसीएम भास्कर, नंदे उर्फ नीला और दीपक पालो जैसे नाम प्रमुख हैं। वासुदेव राव पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था। इन नेताओं का सरेंडर माओवादी संगठन की केंद्रीय कमान को गहरा झटका माना जा रहा है।
अमित शाह बोले – अबूझमाड़ नक्सलमुक्त, लक्ष्य के बेहद करीब
गृह मंत्री अमित शाह ने हाल में कहा, “यह अत्यंत खुशी की बात है कि जो क्षेत्र कभी नक्सल आतंक का गढ़ था, छत्तीसगढ़ का अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर, अब नक्सली हिंसा से पूरी तरह मुक्त हैं। अब केवल दक्षिण बस्तर में कुछ छिटपुट नक्सली सक्रिय हैं, जिन्हें भी शीघ्र खत्म कर दिया जाएगा।” शाह ने कहा कि यह 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलवाद को जड़ से समाप्त करने के केंद्र के संकल्प का प्रतीक है।
सुरक्षा बलों की रणनीति: ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ ने बदला युद्ध का नक्शा
नक्सलियों के खिलाफ अभियान में सीआरपीएफ, डीआरजी, एसटीएफ, बीएसएफ और आईटीबीपी की संयुक्त रणनीति निर्णायक साबित हो रही है। सीआरपीएफ की विशेष इकाई ‘कोबरा’ इस युद्ध की अग्रिम पंक्ति में है। बीते दो वर्षों में सुरक्षा बलों ने जंगलों में तेजी से ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (FOB)’ स्थापित किए हैं, जिससे नक्सलियों के ठिकाने ध्वस्त होने लगे हैं।
पहले जहां दो एफओबी के बीच 20–25 किलोमीटर का अंतर होता था, अब यह घटकर चार–पांच किलोमीटर रह गया है। इसका नतीजा है कि अब नक्सलियों के पास केवल दो विकल्प बचे हैं – ‘सरेंडर या गोली’।
तीन सौ से अधिक एफओबी से टूटी नक्सलियों की कमर
सुरक्षा बलों ने अब तक 300 से अधिक नए एफओबी स्थापित कर लिए हैं। इन बेसों के कारण नक्सलियों की सप्लाई चेन, रसद, दवाइयां, राशन और वित्तीय नेटवर्क पूरी तरह ठप हो चुके हैं। जंगलों में उनके ट्रेनिंग कैंप और भर्ती तंत्र नष्ट कर दिए गए हैं। परिणामस्वरूप, माओवादी न तो नए सदस्य जोड़ पा रहे हैं, न ही सुरक्षित ठिकाने बनाए रख पा रहे हैं।
कठिन हालात में भी सुरक्षा बलों का अदम्य साहस
बारिश, कीचड़ और दुर्गम इलाकों के बावजूद सीआरपीएफ और डीआरजी के जवान लगातार जंगलों में नए कैंप स्थापित कर रहे हैं। कभी एक एफओबी बनाने में हफ्तों लगते थे, अब जवान 48 घंटे के भीतर नया बेस तैयार कर लेते हैं। कई इलाकों में नाइट लैंडिंग की सुविधा और मोबाइल नेटवर्क भी स्थापित किए जा रहे हैं, ताकि ऑपरेशंस सुचारु रूप से चल सकें।
अब नक्सलवाद अंत की ओर
वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि माओवादी अब केवल कुछ सीमित इलाकों में बचे हैं। उनके ठिकानों पर रोजाना दबाव बढ़ रहा है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “अब नक्सलियों के पास ज्यादा कुछ नहीं बचा है। कुछ क्षेत्र बचे हैं, लेकिन देर-सवेर वहां भी या तो सरेंडर होगा या मुठभेड़। जिस गति से सुरक्षा बल आगे बढ़ रहे हैं, नक्सलवाद 2026 की समयसीमा से पहले ही इतिहास बन जाएगा।”
नक्सल उन्मूलन की यह लड़ाई अब अपने अंतिम चरण में है — और इस बार सरकार व सुरक्षा बलों का आत्मविश्वास बता रहा है कि माओवादी आंदोलन, जो कभी भारत के भीतर ‘रेड जोन’ का पर्याय था, अब ढहने की कगार पर है।





