Saturday, July 27, 2024

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डॉ. यशवंत सिंह कठोच

डॉ. यशवंत सिंह कठोच का नाम वैसे तो उत्तराखंड में परिचय का महौताज़ नहीं है लेकिन हाल ही में उनको मिली उपलब्धी के कारण उनका नाम सुर्ख़ियों में आ गया है l  यशवंत सिंह कठोच को उनके असाधारण योगदान के लिए प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। डॉ. कठोच को यह सम्मान शिक्षा, इतिहास और पुरातत्व के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए दिया गया है।

पौड़ी गढ़वाल के एकेश्वर विकासखंड स्थित मांसों गांव के रहने वाले डॉ. कठोच ने 33 वर्षों तक शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं। इसके साथ ही, इतिहास और पुरातत्व के क्षेत्र में उनका योगदान उल्लेखनीय है। उन्होंने 1974 में आगरा विश्वविद्यालय से प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विषय में अध्ययन किया l  1978 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में गढ़वाल हिमालय के पुरातत्व के शोध ग्रंथ  पर  उन्हें डी.फिल की उपाधि से सम्मानित किया गया।

एक शिक्षक के रूप में डॉ. कठोच ने 33 साल तक अपनी सेवाएं दींl एक शिक्षक के रूप में अपनी ज़िमेदारी का निर्वाह करते हुए उन्होंने शोध और लेखन को बिलकुल नहीं छोड़ा और  सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने इतिहास और पुरातत्व के क्षेत्र में अपना शोध कार्य आगे भी जारी रखा। वह 1973 में स्थापित उत्तराखंड शोध संस्थान के संस्थापक सदस्य भी हैं।

उत्तराखंड के इतिहास को पर गहन शोध कर किताबों के माध्यम से दुनिया के सामने लाने का श्रेय डॉ. कठोच को ही जाता है l उत्तराखंड की कई प्रतियोगी परीक्षाओं में उनके द्वारा लिखित किताबों को संदर्भित करते हुए प्रश्न बनाए जाते हैंl डॉ कठोच को बतौर इतिहास विशेषज्ञ लोक सेवा आयोग में भी बुलाया जाता हैl

 

89 साल के डॉ यशवंत सिंह कठोच अब तक 10 से अधिक किताबें लिखने के साथ 50 से अधिक शोध पत्रों का वाचन कर चुके हैं डॉ. कठोच ने भारतीय संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व पर कई पुस्तकें लिखी हैं l  ‘मध्य हिमालय का पुरातत्व’, ‘उत्तराखंड की सैन्य परंपरा’, ‘संस्कृति के पद-चिन्ह’, ‘मध्य हिमालय की कला: एक वास्तु शास्त्रीय अध्ययन’ और ‘सिंह-भारती’ जैसी प्रमुख पुस्तकें उनकी रचना हैं। इसके अलावा, उनकी दो और पुस्तकें ‘इतिहास तथा संस्कृति पर निबंध’ और ‘मध्य हिमालय के पुराभिलेख’ जल्द ही प्रकाशित होने वाली हैं।

 

 

 

 

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