Wednesday, March 12, 2025

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जलवायु परिवर्तन से घटेगा फसलों का उत्पादन

छह दशक से दुनियाभर में कृषि उपज में लगभग समान दर से वृद्धि जारी है। इस बात की पुष्टि विश्व बैंक और अमेरिका के इडाहो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने की है। लेकिन, हाल के दशकों में जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियाभर में फसलों के उत्पादन में कमी या स्थिरता आने के आसार हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया को भविष्य में पानी की चुनौती से जूझना पड़ सकता है। अध्ययन के अनुसार पिछले छह दशकों के दौरान खाद्य उत्पादन में वृद्धि का अधिकांश हिस्सा तकनीकी विकास के कारण संभव हुआ है। इसके अलावा फसल की बेहतर किस्मों का व्यापक विकास और उपयोग भी बेहतर खाद्य उत्पादन का एक बड़ा कारण रहा है। खाद्य उत्पादन के सटीक परिणाम प्राप्त करने के लिए शोधकर्ताओं ने मानवजनित उपाय विकसित किए। 144 फसलों के लिए उत्पादन और उपज को मापने के लिए ज्यादा से ज्यादा कैलोरी आधारित सूचकांक का उपयोग किया। यह सूचकांक दुनियाभर में कृषि भूमि और खाद्य उत्पादन के 98 फीसदी भाग को कवर करता है। कैलोरिक उपयुक्तता सूचकांक (सीएसआई) दुनियाभर में संभावित फसल उपज में भिन्नता को दर्शाता है, जिसे प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर कैलोरी में मापा जाता है। इसके आधार पर पता चला है कि दुनियाभर में उपज में बढ़ोतरी कृषि उत्पादकता का एक अहम संकेतक है जो लगातार पिछले छह दशकों में कभी भी धीमा नहीं पड़ा है।हर साल धरती की सतह पर लगभग एक लाख 10 हजार क्यूबिक किलोमीटर बारिश होती है। लगभग 40 हजार क्यूबिक किलोमीटर पानी नदियों और भूजल में जाता है। बाकी पानी मिट्टी से सीधे वाष्पित हो जाता है। लोग शहरों, उद्योगों और कृषि के लिए नदियों और जलभृतों से 3,700 क्यूबिक किलोमीटर पानी निकालते हैं। कृषि सिंचाई में इसका अधिकांश हिस्सा खर्च होता है। सिंचाई के लिए इसका 70 फीसदी यानी 2,600 क्यूबिक किलोमीटर पानी खर्च होता है। या कुल निकासी का 70%। वर्षा, खाद्य उत्पादन के लिए भरपूर पानी उपलब्ध कराती है लेकिन अक्सर सही जगह या सही समय पर बारिश नहीं होती। इसके लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है। इसलिए पूरी दुनिया को पानी संचित करने की बेहतर से बेहतर तकनीक तलाशनी होगी।

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