नई दिल्ली। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा और वैश्विक मंच पर एक बार फिर यूएन को आईना दिखाया। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अभी भी 1945 की मानसिकता में फंसा हुआ है, जो आज की वैश्विक चुनौतियों और शक्तियों के संतुलन के अनुरूप नहीं है। जयशंकर ने यह टिप्पणी अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, सुधार और विकास के मुद्दों पर अपनी धारणा स्पष्ट करते हुए की।
विदेश मंत्री ने अपने बयान में कहा कि यूएन का ढांचा और निर्णय प्रक्रिया अब वास्तविक विश्व व्यवस्था का प्रतिबिंब नहीं है। उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद और अन्य निर्णय लेने वाले निकाय अब दुनिया की वास्तविक शक्ति संरचना और वैश्विक परिस्थितियों के साथ तालमेल नहीं रखते। बदलाव की जरूरत है। यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि कई देशों की आवाज़ भी है।”
जयशंकर ने इसके लिए सदस्य देशों की अधिक प्रतिनिधित्व और पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि वैश्विक संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और आर्थिक असमानता जैसे चुनौतियों का सामना करने के लिए वर्तमान ढांचा पर्याप्त नहीं है। विदेश मंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य और सिद्धांतों को सशक्त बनाने का समर्थन किया है, लेकिन वास्तविक सुधार के बिना संगठन का प्रभाव सीमित रहेगा।
उन्होंने कहा कि वैश्विक मंच पर बदलाव के बिना, छोटे और विकासशील देशों की आवाज़ दब जाएगी। जयशंकर ने जोर देकर कहा कि भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र सुधार की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं और यह समय आ गया है कि यूएन अपनी सदस्य संरचना, कार्यप्रणाली और निर्णय क्षमता में आधुनिक युग के अनुरूप बदलाव करे।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि जयशंकर के इस बयान के पीछे भारत की लगातार बढ़ती वैश्विक भूमिका का संदेश है। भारत न केवल सुरक्षा और विकास के मुद्दों में जिम्मेदारी निभाना चाहता है, बल्कि विश्व राजनीति में निष्पक्ष और प्रभावी प्रतिनिधित्व का मार्ग भी तय करना चाहता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि विदेश मंत्री की यह टिप्पणी यूएन सुधार के प्रति भारत की अडिग नीति को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि 1945 में स्थापित ढांचा अब दुनिया के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक वास्तविकताओं से मेल नहीं खाता। इसलिए आवश्यक है कि सदस्यों के प्रतिनिधित्व, वीटो अधिकार और निर्णय प्रक्रिया में बदलाव लाया जाए।
जयशंकर ने अंत में कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र की मूल विचारधारा में विश्वास रखता है, लेकिन समय के साथ ढांचे में सुधार और लोकतांत्रिक विस्तार ही इसे भविष्य के वैश्विक चुनौतियों के लिए सक्षम बनाएगा।
कार्यक्रम में कई विदेशी राजनयिक और अंतरराष्ट्रीय संगठन के प्रतिनिधि मौजूद थे। जयशंकर के भाषण को वैश्विक नीति विश्लेषकों ने सशक्त, स्पष्ट और भारत की वैश्विक दृष्टि का प्रतिबिंब बताया।





