देश में वायु प्रदूषण अब केवल महानगरों की समस्या नहीं रह गई है। ताजा अध्ययनों ने संकेत दिया है कि गांवों में भी हवा उतनी ही जहरीली होती जा रही है, जितनी शहरों में। ग्रामीण क्षेत्रों में धूलकणों और हानिकारक गैसों के बढ़ते स्तर की वजह से लोगों की औसत आयु में करीब 5 साल की कमी दर्ज की गई है। विशेषज्ञों ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि प्रदूषण के कारण जनस्वास्थ्य संकट तेजी से गहराता जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में धान की पराली जलाना, ईंट भट्टों का धुंआ, बिना फिल्टर चिमनियों वाले कारखाने, अनियंत्रित वाहन प्रदूषण और मिट्टी के कण हवा में मिलकर वायु गुणवत्ता को बेहद खराब बना रहे हैं। ये प्रदूषक फेफड़ों और हृदय के लिए विशेष रूप से घातक माने जाते हैं।
ग्रामीण महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि पारंपरिक चूल्हों में जलने वाले ठोस ईंधन से निकलने वाला धुआं घरों के भीतर प्रदूषण को कई गुना बढ़ा देता है। इसका सीधा असर महिलाओं और छोटे बच्चों पर होता है, जो रसोई में अधिक समय बिताते हैं। सांस की समस्या, आंखों में जलन और फेफड़ों की बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं।
सरकारी प्रयासों के बावजूद चुनौतियां बरकरार
हालांकि सरकार ने स्वच्छ ईंधन, हरित ऊर्जा और प्रदूषण नियंत्रण को लेकर कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका लाभ सीमित क्षेत्रों तक ही पहुंच पाया है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ग्रामीण प्रदूषण अक्सर नज़रअंदाज कर दिया जाता है, जबकि इसके दुष्परिणाम शहरों की तुलना में अधिक व्यापक हो सकते हैं।
पर्यावरणविदों ने सुझाव दिया है कि यदि गांवों में प्रदूषण पर तत्काल और ठोस कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में ग्रामीण स्वास्थ्य-व्यवस्था पर भारी बोझ बढ़ जाएगा। साथ ही शुद्ध वातावरण और लंबी आयु, दोनों ही खतरे में पड़ जाएंगे।


