Saturday, November 15, 2025

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‘आतंक के पीड़ित और गुनहगार एक नहीं…’ एस्. जयशंकर ने पाकिस्तान व संयुक्त राष्ट्र को किया निशाना

नई दिल्ली — देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को कहा है कि आतंकवाद के संदर्भ में “पीड़ित” और “गुनहगार” को एक समान समझना खतरनाक है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि जब एक सदस्य राज्य खुलकर उस संगठन का समर्थन करे जिसने नृशंस हमला किया हो, तो वैश्विक बहुपक्षीय संस्थाओं की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।

यह टिप्पणी उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संगठन (यूएन) के 80वें वर्ष समारोह के अवसर पर की, जहाँ उन्होंने कहा कि वैश्विक सहयोग और बहुपक्षवाद (मल्टीलेटरलिज्म) को बचाए रखना आज से अधिक महत्वपूर्ण कभी नहीं था।

प्रमुख बिंदु

  • जयशंकर ने कहा कि “यदि आतंकवाद के पीड़ितों और गुनहगारों को वैश्विक रणनीति के नाम पर बराबरी की दृष्टि से देखा जाए, तो कितना अधिक निष्ठुर हो सकता है यह संसार।”
  • उन्होंने इस बात की ओर संकेत किया कि यूएन सुरक्षा परिषद के एक मौजूदा सदस्य ने उस संगठन का संरक्षण किया है जिसने जम्मू-कश्मीर के पाहलगाम टूरिस्ट हमला जैसा आतंकवादी कांड स्वीकार किया था।
  • जयशंकर ने कहा कि यूएन की कार्यप्रणाली आज “जितनी ध्रुवीकृत (polarised) हुई है, उतनी शायद कभी नहीं थी” और इसके निर्णय-प्रक्रिया में “दृष्टिगत ग्रिडलॉक” देखने को मिल रहा है।
  • उन्होंने यह भी कहा कि बदलाव का रास्ता बंद नहीं है, लेकिन इस समय बहुपक्षीयता के प्रति प्रतिबद्धता और अधिक ज़रूरी हो चुकी है। संदर्भ एवं निहितार्थ

इन टिप्पणियों को विश्लेषक इस रूप में देख रहे हैं कि यह भारत-पाकिस्तान संबंधों और आतंकवाद-नियंत्रण के वैश्विक ढाँचे दोनों पर निर्देशित हैं।

  • भारत समय-समय पर यह आरोप लगाता रहा है कि पाकिस्तान “राज्य-प्रायोजित आतंकवाद” को सहारा देता है।
  • विदेश मंत्री की इस टिप्पणी में मौन रहने वाले महाशक्तियों और संस्थाओं से यह अपेक्षा जताई गई है कि वे सक्रिय भूमिका निभाएँ, न कि सिर्फ औपचारिक घोषणाएँ करें।
  • वैश्विक मंच पर जब एक राज्य खुलकर उस संगठन का समर्थन करता दिखे जिसने नागरिकों पर हमला किया, तो बहुपक्षीय संस्थाओं की वैधता (लेगिटिमेसी) सवालों के घेरे में आ जाती है।

आगे क्या हो सकता है

  • भारत आगे भी आतंकवाद-समर्थक नेटवर्क और उनके संरक्षकों के खिलाफ कूटनीतिक दबाव जारी रख सकता है।
  • यूएन सुधारों को लेकर भारत की आवाज को बल मिल सकता है और संभव है कि नई गठबंधन-नीतियाँ उभरें।
  • इस वक्त वैश्विक सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी रणनीतियों और बहुपक्षीय संस्थाओं के पुनरूद्धार (रिफॉर्म) पर भारत की दिशा-निर्देश स्पष्ट दिख रही है।

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