Sunday, June 29, 2025

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होर्मुज संकट की आहट: भारत कितनी गंभीरता से ले रहा है ईरान की धमकी?

मध्य पूर्व में एक बार फिर तनाव बढ़ता दिख रहा है। इस्राइल-ईरान संघर्ष में अमेरिका की बढ़ती दखलंदाजी ने वैश्विक ऊर्जा बाजारों में चिंता की लहर फैला दी है। सबसे ज्यादा चिंता का कारण है ईरान द्वारा होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की संभावित योजना, जिसे लेकर भारत समेत दुनियाभर में निगरानी तेज हो गई है।

क्या है होर्मुज जलडमरूमध्य और क्यों है अहम?

होर्मुज जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ने वाला एक संकीर्ण लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है। दुनियाभर के कच्चे तेल का लगभग 30 प्रतिशत और एक तिहाई एलएनजी (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) इसी मार्ग से होकर गुजरता है। यह मार्ग ईरान को अरब देशों से अलग करता है और केवल 33 किलोमीटर चौड़ा है, जबकि जहाजों की आवाजाही के लिए इसमें तीन-तीन किलोमीटर के दो लेन हैं — जिससे यह मार्ग बेहद संवेदनशील हो जाता है।

भारत पर संभावित असर क्या हो सकता है?

भारत अपनी दैनिक तेल जरूरतों का बड़ा हिस्सा—करीब 5.5 मिलियन बैरल प्रति दिन—आयात करता है, जिसमें से लगभग 2 मिलियन बैरल होर्मुज जलडमरूमध्य के रास्ते आता है। हालांकि, भारत ने बीते वर्षों में अपनी ऊर्जा आपूर्ति को विविध बनाने की रणनीति अपनाई है। रूस, अमेरिका, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से अब भारत को वैकल्पिक आपूर्ति प्राप्त हो रही है।

गैस आपूर्ति के लिहाज से भी भारत की निर्भरता अब केवल खाड़ी देशों तक सीमित नहीं है। कतर को छोड़कर अन्य प्रमुख स्रोत जैसे ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और रूस होर्मुज मार्ग से प्रभावित नहीं होंगे।

सरकार की रणनीति और तैयारी

केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी के अनुसार, सरकार स्थिति पर सतर्क नजर बनाए हुए है। उन्होंने कहा कि तेल विपणन कंपनियों के पास कई हफ्तों की आपूर्ति का भंडार है और आपूर्ति चैन को विविध मार्गों से मजबूत बनाया गया है।

सरकार ने यह भी संकेत दिए हैं कि यदि अंतरराष्ट्रीय कीमतें 105 डॉलर प्रति बैरल के पार जाती हैं, तो ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कटौती पर विचार किया जा सकता है ताकि उपभोक्ताओं को राहत मिल सके।

बाजार की सच्चाई और विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि होर्मुज जलडमरूमध्य कुछ दिनों के लिए भी बाधित होता है तो इसका सीधा असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। तेल की कीमतों में उछाल आएगा और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को आयात बिल में भारी इजाफा झेलना पड़ सकता है।

हालांकि, कुछ विश्लेषकों को उम्मीद है कि ईरान की यह धमकी लंबी नहीं चलेगी और कूटनीतिक समाधान निकल आएगा।

हालात भले ही अभी नियंत्रण में लगते हों, लेकिन यह स्पष्ट है कि होर्मुज जलडमरूमध्य की सुरक्षा और स्थायित्व वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा की रीढ़ है। भारत की ऊर्जा नीति में विविधता लाना, दीर्घकालिक अनुबंध और रणनीतिक भंडारण जैसी पहलों ने उसे इस संकट से लड़ने के लिए तैयार किया है, लेकिन फिर भी यह संकट एक चेतावनी है—कि दुनिया की ऊर्जा निर्भरता को लेकर नए विकल्पों की तलाश अभी अधूरी है।

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