कोलकाता। बाबरी मस्जिद पर अपने विवादित बयानों के लिए सुर्खियों में रहने वाले पूर्व आईपीएस और राजनेता हुमायूं कबीर की पार्टी में उस समय बड़ा विवाद खड़ा हो गया, जब उनकी पार्टी की प्रमुख महिला नेता निशा चटर्जी ने टिकट कटने के बाद मोर्चा खोल दिया। निशा चटर्जी ने पार्टी नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाते हुए अपनी धार्मिक पहचान को लेकर बड़ी बात कह दी है, जिससे बंगाल की राजनीति में एक नई बहस छिड़ गई है।
‘मैं हिंदू हूँ, क्या इसलिए टिकट कटा?’
निशा चटर्जी ने एक भावुक और आक्रामक प्रेस वार्ता में पार्टी से अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके काम और समर्पण के बावजूद उन्हें किनारे कर दिया गया।
- धार्मिक पहचान पर सवाल: निशा ने तीखा सवाल पूछते हुए कहा, “मैं हिंदू हूँ, क्या इसी वजह से मेरा टिकट काटा गया? अगर इस पार्टी में हिंदुओं के लिए कोई जगह नहीं है, तो हमें पहले बताया जाना चाहिए था।”
- हुमायूं कबीर पर निशाना: उन्होंने पार्टी प्रमुख हुमायूं कबीर की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह एक विशेष विचारधारा को ही आगे बढ़ा रहे हैं और पार्टी के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
बाबरी वाले बयान की पृष्ठभूमि
हुमायूं कबीर वही नेता हैं जिन्होंने कुछ समय पहले बाबरी मस्जिद को लेकर बेहद संवेदनशील टिप्पणी की थी, जिसके बाद उनकी काफी आलोचना हुई थी।
- कट्टरपंथी छवि: हुमायूं कबीर की छवि एक कट्टरपंथी रुख रखने वाले नेता की रही है। निशा चटर्जी के आरोपों ने इस छवि को लेकर चल रही चर्चाओं को और बल दे दिया है।
- पार्टी के भीतर मतभेद: सूत्रों के अनुसार, पार्टी के भीतर पिछले काफी समय से टिकट वितरण और सांगठनिक पदों को लेकर असंतोष पनप रहा था, जो अब निशा चटर्जी के बयान के बाद खुलकर सामने आ गया है।
चुनावी समीकरणों पर असर
निशा चटर्जी एक प्रभावशाली महिला चेहरा मानी जाती रही हैं। उनके इस तरह के आरोपों से चुनाव से ठीक पहले पार्टी की साख को बड़ा धक्का लगा है।
- वोट बैंक की राजनीति: विशेषज्ञों का मानना है कि निशा चटर्जी द्वारा ‘हिंदू कार्ड’ खेलने से पार्टी के भीतर ध्रुवीकरण हो सकता है, जिससे आगामी चुनावों में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
- इस्तीफे की झड़ी: निशा के समर्थन में कई अन्य स्थानीय कार्यकर्ताओं ने भी सामूहिक इस्तीफे की धमकी दी है।
पार्टी का पक्ष
हालांकि, हुमायूं कबीर या पार्टी के अन्य बड़े नेताओं ने अभी तक निशा चटर्जी के इन आरोपों पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। पार्टी के करीबी सूत्रों का कहना है कि टिकट का फैसला ‘जीत की क्षमता’ (Winability) के आधार पर लिया गया है, न कि धर्म के आधार पर।
“मैंने पार्टी को अपना खून-पसीना दिया, लेकिन अंत में मुझे मेरी पहचान के आधार पर खारिज कर दिया गया। यह केवल मेरा अपमान नहीं, बल्कि उन सभी लोगों का अपमान है जो समावेशी राजनीति में विश्वास रखते हैं।” — निशा चटर्जी





