हरिद्वार: ‘खेलेगा इंडिया, तो खिलेगा इंडिया’ का नारा धर्मनगरी हरिद्वार में कागजी साबित हो रहा है। एक हालिया रिपोर्ट ने शिक्षा विभाग के दावों की पोल खोल दी है, जिसके अनुसार जनपद के 50 प्रतिशत स्कूलों में छात्रों के पास खेलने के लिए खेल का मैदान तक उपलब्ध नहीं है। विडंबना यह है कि बुनियादी ढांचे की कमी के साथ-साथ स्कूलों में खेल शिक्षकों (PTIs) का भी भारी टोटा बना हुआ है, जिससे बच्चों के खिलाड़ी बनने के सपनों को उड़ान नहीं मिल पा रही है।
मैदान के अभाव में सड़कों पर खेलने को मजबूर छात्र
- बुनियादी ढांचे की कमी: हरिद्वार जिले के सरकारी और कई निजी स्कूलों में मानकों के विपरीत खेल के मैदानों का अभाव है। कई स्कूल केवल कमरों तक ही सीमित होकर रह गए हैं।
- शिक्षकों के पद रिक्त: जिले के आधे से अधिक माध्यमिक और प्राथमिक स्कूलों में शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों (Physical Education Teachers) के पद लंबे समय से खाली पड़े हैं, जिससे खेल गतिविधियों का संचालन ठप है।
- प्रतिभाओं का पलायन: खेल सुविधाएँ न मिलने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों की होनहार प्रतिभाएं समय रहते निखर नहीं पा रही हैं और खेल छोड़ने को मजबूर हैं।
हरिद्वार जिले की वर्तमान स्थिति: एक नजर में
| श्रेणी | स्थिति | प्रभाव |
| खेल मैदान | 50% स्कूलों में नहीं | शारीरिक विकास बाधित |
| खेल शिक्षक | 60% से अधिक पद रिक्त | प्रशिक्षण का अभाव |
| प्रतियोगिताएँ | केवल खानापूर्ति | बच्चों में प्रतिस्पर्धा की कमी |
मानकों की अनदेखी और प्रशासनिक सुस्ती
शिक्षा विभाग के नियमों के अनुसार, किसी भी स्कूल की मान्यता के लिए खेल का मैदान अनिवार्य शर्त है। लेकिन हरिद्वार में:
- मान्यता के खेल: कई स्कूल बिना पर्याप्त भूमि के ही संचालित हो रहे हैं, जिस पर विभाग ने अब तक चुप्पी साधी हुई है।
- फंड का इस्तेमाल: खेल सामग्री के लिए आने वाला बजट भी कई स्कूलों में मैदान न होने के कारण डस्टबिन में पड़ा रहता है या उसका सही उपयोग नहीं हो पाता।
- स्वास्थ्य पर असर: शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण स्कूली बच्चों में मोटापे और आलस्य जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।
अभिभावकों और खेल प्रेमियों में रोष
स्थानीय खेल प्रेमियों का कहना है कि जब स्कूलों में बुनियादी सुविधाएँ ही नहीं होंगी, तो उत्तराखंड से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी कैसे निकलेंगे? अभिभावकों ने सरकार से मांग की है कि स्कूलों में खेल के मैदानों का सीमांकन किया जाए और रिक्त पदों पर तत्काल नियुक्तियां की जाएं।
विभागीय पक्ष
शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे भूमि उपलब्धता की जांच कर रहे हैं और जहाँ संभव है, वहां सामुदायिक मैदानों का उपयोग करने की योजना बनाई जा रही है। शिक्षकों की कमी को लेकर शासन को प्रस्ताव भेजा गया है।





