नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण की सीमा को लेकर कड़ा निर्देश देते हुए कहा कि किसी भी परिस्थिति में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट कहा कि राज्य सरकार संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए कुल आरक्षण सीमा को बढ़ाने का प्रयास नहीं कर सकती।
मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि स्थानीय निकायों में पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण की संरचना वही होगी जो संविधान और पूर्व न्यायिक निर्णयों के अनुरूप निर्धारित है। अदालत ने यह भी कहा कि 50% की सीमा ‘कानूनी रूप से बाध्यकारी’ है और राज्य सरकारें इसे अपने हिसाब से परिवर्तित नहीं कर सकतीं।
पीठ ने सुनवाई के दौरान यह भी जांचा कि क्या राज्य सरकार ने OBC आरक्षण लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए “ट्रिपल टेस्ट” मानदंडों का पालन किया है या नहीं। अदालत ने कहा कि जब तक ट्रिपल टेस्ट के तहत सभी प्रक्रियाएं पूरी नहीं की जातीं, तब तक OBC के लिए अलग से आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता।
ट्रिपल टेस्ट में शामिल हैं—
- कमीशनद्वारा सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन पर विस्तृत अध्ययन,
- स्थानीयनिकायों में OBC की जनसंख्या का डेटा आधारित निर्धारण,
- कुलआरक्षण सीमा 50% से अधिक न होना।
पीठ ने कहा कि केवल राजनीतिक दबाव या सामाजिक मांग के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता, इसके लिए वैज्ञानिक और डेटा-आधारित प्रक्रिया जरूरी है।
महाराष्ट्र सरकार ने दलील दी कि स्थानीय निकायों में विभिन्न वर्गों के समानुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए कुछ पदों पर आरक्षण बढ़ाना आवश्यक है। लेकिन अदालत ने राज्य के तर्क को स्वीकार नहीं किया और कहा कि यदि आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई तो यह संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
अदालत ने दो टूक कहा—
“आरक्षण का उद्देश्य प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है, लेकिन इसे असंवैधानिक सीमा तक नहीं बढ़ाया जा सकता। राज्य संविधान से ऊपर नहीं है।”
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से महाराष्ट्र में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारियों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। राज्य निर्वाचन आयोग को अब आरक्षण की नई सूची उसी सीमा के भीतर तैयार करनी होगी, जिससे कई नगर निगमों और नगर पंचायतों के वार्डों में आरक्षण का ढांचा बदल सकता है।
निर्णय के बाद महाराष्ट्र की सियासत में हलचल तेज हो गई है।
- विपक्षने आरोप लगाया कि सरकार ने जल्दबाजी और बिना तैयारी के OBC आरक्षण बढ़ाने की कोशिश की, जिससे मामला अदालत में उलझा।
- जबकिसरकार के समर्थक वर्ग का कहना है कि सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण संरचना में बदलाव आवश्यक था।
सुप्रीम कोर्ट का यह स्पष्ट निर्देश आरक्षण संबंधी नीति निर्माण में संविधान की सर्वोच्चता को दोहराता है। अदालत ने कहा है कि राज्य सरकारें आरक्षण का विस्तार करते समय कानूनी सीमाओं का पालन करें और डेटा-आधारित प्रक्रिया को अपनाएं।
अब राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग को अदालत के निर्देशों के अनुरूप स्थानीय निकाय चुनावों की नई सीट संरचना तैयार करनी होगी।





