अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहली बार इस्राइल के साथ मिलकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया। यह वही ट्रंप हैं, जिन्होंने बड़े विदेशी युद्धों में हस्तक्षेप से बचने की बात कही थी। उन्होंने ईरान के सबसे मजबूत भूमिगत परमाणु स्थल को भी निशाना बनाया। विश्लेषक इसे उनके दोनों कार्यकालों की सबसे जोखिम भरी विदेश नीति मान रहे हैं।
ट्रंप ने शनिवार को कहा था कि ईरान को अमन-चैन कायम करना चाहिए। वरना, उसे और हमले झेलने होंगे। विश्लेषक मानते हैं कि यह एलान ईरान को जवाबी कार्रवाई के लिए उकसाएगा। वह सबसे अहम तेल मार्ग होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर पश्चिम एशिया में अमेरिकी सैन्य ठिकानों व सहयोगियों पर हमला कर सकता है। इस्राइल पर मिसाइल हमले बढ़ाने के साथ ही वह दुनियाभर में अमेरिका व इस्राइल के खिलाफ छद्म समूह सक्रिय करेगा। इससे ट्रंप की कल्पना से कहीं अधिक व्यापक, दीर्घ व अनचाही जंग छिडृ सकती है। यह इराक व अफगानिस्तान में लड़े गए अमेरिकी युद्धों की याद ताजा कर सकते हैं। डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन प्रशासन के लिए मध्य पूर्व वार्ताकार रहे आरोन डेविड मिलर कहते हैं, ईरान की सैन्य क्षमता कमजोर हो चुकी है, पर उसके पास अब भी जवाब देने के अप्रत्याशित व घातक तरीके हैं। टकराव जल्द खत्म नहीं होगा। हमले से पूर्व ट्रंप सैन्य धमकी व बातचीत की अपील के बीच झूलते रहे। हमले पूरी तरह कामयाब होने का भरोसा मिलने पर ही बम बरसाने का आदेश दिया।
ट्रंप की शक्ति से शांति के नारे की परीक्षा का असल वक्त अब आया है। ट्रंप ने चुनावी वादों में यूक्रेन व गाजा युद्ध खत्म कराने की बात की थी, पर नाकाम रहे। अब उन्होंने एक और युद्ध छेड़ दिया है। अंतरराष्ट्रीय संकट समूह में संयुक्त राष्ट्र की निदेशक रिचर्ड गोवन ने कहा, ट्रंप युद्ध के कारोबार में वापस आ गए हैं। मुझे यकीन है कि ट्रंप की शांति दूत वाली छवि रूस, ईरान, चीन को कभी भी असली नहीं लगी होगी।
ट्रंप ने फोर्डो में बंकर बस्टर बमों के इस्तेमाल को बड़ी कामयाबी बता बखान किया, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही इसने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कई साल तक पीछे धकेल दिया हो, लेकिन खतरा अभी टला नहीं हैं। ये उसके संवेदनशील परमाणु गतिविधियों को फिर से संगठित करने के संकल्प को मजबूत ही करेंगे।
ट्रंप का हमला उल्टा असर डाल सकता है, क्योंकि ईरान हमेशा कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है। हमले के बाद भी अभी ईरान के छह परमाणु केंद्र हैं और वह बम बनाने मेें सक्षम है। अमेरिकी संगठन आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन की मानें, तो हमला ईरान को परमाणु हथियार बनाने के लिए मजबूर कर सकता है। ईरान की परमाणु एजेंसी ने भी कहा कि सभी क्षतिग्रस्त परमाणु केंद्र त्वरित गति से पुनर्निर्मित किए जाएंगे और ज्यादा तीव्र गति से गतिविधियां शुरू की जाएंगी।
अमेरिकी हमले के तुरंत बाद, ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन ने कहा कि वह औद्योगिकी विकास रोकने की इजाजत कतई नहीं देगा। ईरानी सरकारी टीवी पर कहा गया, अब क्षेत्र में हर अमेरिकी नागरिक या सैनिक वैध निशाना हैं। रविवार सुबह ही ईरान के विदेश मंत्रालय ने एलान किया कि ईरान अमेरिकी सैन्य आक्रमण के खिलाफ पूरी ताकत से जवाब देगा। कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के विश्लेषक करीम सादजादपुर ने कहा, ट्रंप इसे अमन-चैन का वक्त बता रहे, लेकिन ईरान इसे जंग की शुरुआत मानेगा। यह 46 साल पुराने अमेरिकी-ईरान टकराव को खत्म करने के बजाय युद्ध का नया अध्याय शुरू कर सकता है।
फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग में सहायक प्रोफेसर एरिक लॉब का कहना है कि ईरान अगला कदम क्या उठाएगा, यह साफ नहीं है। वह अमेरिका- इस्राइल से जुड़े आसान लक्ष्यों पर हमला कर सकता है या कमजोर स्थिति में बातचीत की कोशिश भी कर सकता है। हालांकि, अमेरिकी हमलों के तुरंत बाद, ईरान ने रियायतों के लिए बहुत कम इच्छा दिखाई।
ट्रंप प्रशासन ईरान में सत्ता परिवर्तन की तरफ बढ़ सकता है। हालांकि वाशिंगटन में जॉन्स हॉपकिंस स्कूल फॉर एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज में मध्य पूर्व विश्लेषक लॉरा ब्लूमेनफेल्ड ने चेताया है कि हुकूमत बदलने व लोकतंत्र थोपने की अमेरिकी कोशिशें पहले भी मध्य-पूर्व की रेत में दफन हो चुकी हैं। वहीं, पूर्व उप खुफिया अधिकारी जोनाथन पैनिकॉफ कहते हैं कि ईरान का होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करना उसके बड़े सहयोगी चीन को भी नुकसान पहुंचाएगा। यह अमेरिका में महंगाई बढ़ा सकता है।