मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत ने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली और लोकतांत्रिक ढांचे में बार की भूमिका को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि संविधान की पवित्रता और कानून के शासन (Rule of Law) को बनाए रखने में अधिवक्ताओं की जिम्मेदारी किसी भी अन्य संस्था से कम नहीं है। एक समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि न्यायपालिका और बार एक ही न्यायिक व्यवस्था के दो आवश्यक स्तंभ हैं, और दोनों के सहयोग से ही न्याय प्रणाली प्रभावी रूप से काम करती है।
CJI सूर्यकांत ने कहा कि भारतीय संविधान ने प्रत्येक नागरिक को अधिकारों और स्वतंत्रताओं की सुरक्षा की गारंटी दी है, और इन अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने में न्यायपालिका के साथ-साथ बार की भूमिका भी अपरिहार्य है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अधिवक्ता केवल मुकदमों में प्रतिनिधित्व करने वाले पेशेवर नहीं हैं, बल्कि वे संविधान के मूल्यों के संरक्षक भी हैं, जिन पर न्यायिक व्यवस्था का भरोसा टिका है।
उन्होंने यह भी कहा कि कानून के शासन को बनाए रखने के लिए बार का मजबूत, स्वतंत्र और नैतिक रूप से प्रतिबद्ध रहना आवश्यक है। एक जिम्मेदार बार न केवल न्यायालयों को सशक्त बनाता है, बल्कि समाज में न्याय के प्रति भरोसा भी बढ़ाता है। उन्होंने अधिवक्ताओं से अपेक्षा जताई कि वे न केवल अदालत में, बल्कि समाज में भी नागरिकों को कानूनी जागरूकता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रेरित करें।
अपने संबोधन में CJI सूर्यकांत ने यह भी उल्लेख किया कि समय के साथ न्याय प्रणाली में कई तरह की चुनौतियां बढ़ी हैं—मुकदमों की संख्या में निरंतर वृद्धि, तकनीकी बदलाव और तेजी से बदलती सामाजिक परिस्थितियों में नई कानूनी जटिलताएं। उन्होंने कहा कि इन सभी परिस्थितियों में बार का सहयोग और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि अधिवक्ता न्यायालय और जनता के बीच की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी हैं।
समापन में उन्होंने कहा कि न्यायपालिका और बार मिलकर ही संविधान की आत्मा को जीवित रखते हैं। यदि दोनों संस्थान पारदर्शिता, नैतिकता और संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें, तो लोकतंत्र और अधिक सुदृढ़ होगा। उन्होंने अधिवक्ताओं को संविधान की रक्षा में सक्रिय, सजग और समर्पित रहने का आग्रह किया।





