रूस से तेल खरीदने को लेकर अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच खींचतान तेज हो गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने के बाद अब चीन पर भी इसी तरह के कदम पर विचार करना शुरू कर दिया है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने एक इंटरव्यू में कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप, चीन पर रूस से तेल आयात करने के लिए टैरिफ लगाने के विकल्प पर सोच रहे हैं, हालांकि इस पर अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
वेंस ने कहा, “चीन का मुद्दा थोड़ा जटिल है, क्योंकि रूस को छोड़ भी दें तो चीन पर टैरिफ लगाने से कई और पहलुओं पर असर पड़ सकता है। राष्ट्रपति इस समय स्थिति का आकलन कर रहे हैं।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत के मामले में टैरिफ लगाने का निर्णय अपेक्षाकृत आसान था, लेकिन चीन के साथ संबंध कई स्तरों पर जुड़े हुए हैं, जिससे मामला संवेदनशील हो जाता है।
चीन का रूसी तेल आयात रिकॉर्ड स्तर पर
सीमा शुल्क आंकड़ों के अनुसार, जुलाई में चीन का रूस से तेल आयात 10 अरब डॉलर से अधिक हो गया—जो मार्च के बाद का सबसे ऊंचा मासिक आंकड़ा है। हालांकि, 2024 की तुलना में इस साल अब तक चीन का रूस से कुल आयात 7.7 प्रतिशत घटा है। इसके बावजूद, अमेरिकी टैरिफ की आशंकाओं के बीच चीन ने रूस के साथ अपने ऊर्जा व्यापार का मजबूती से बचाव किया है।
चीनी विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को स्पष्ट किया, “रूस सहित दुनिया के सभी देशों के साथ सामान्य आर्थिक, व्यापारिक और ऊर्जा सहयोग करना चीन का वैध अधिकार है। हम अपने राष्ट्रीय हितों और ऊर्जा जरूरतों के अनुसार तेल खरीद जारी रखेंगे।”
भारत पर पहले ही 50% टैरिफ लागू
पिछले हफ्ते राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल खरीदने के कारण अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का एलान किया, जिससे भारत पर कुल अमेरिकी टैरिफ दर 50 प्रतिशत हो गई है। यह अतिरिक्त शुल्क 27 अगस्त से लागू होगा।
भारत ने इस कदम पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। विदेश मंत्रालय ने इसे “अनुचित और अविवेकपूर्ण” बताया और कहा, “भारत का ऊर्जा आयात हमारी ऊर्जा जरूरतों और बाजार के कारकों से प्रेरित है। 1.4 अरब की आबादी के लिए ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है।”
भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि
अमेरिका लंबे समय से रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाने के लिए वैश्विक सहयोगियों को उसके साथ व्यापार घटाने के लिए कहता रहा है। 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से वॉशिंगटन ने रूस से तेल और गैस खरीदने वाले देशों को अप्रत्यक्ष चेतावनियां दीं, लेकिन भारत और चीन जैसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता देशों ने खुले तौर पर अपनी ऊर्जा नीति को स्वतंत्र बनाए रखने का ऐलान किया।
भारत और चीन दोनों ही रूसी कच्चे तेल को रियायती दरों पर खरीदते रहे हैं, जिससे वे घरेलू बाजार में ईंधन की कीमतों को नियंत्रित कर पा रहे हैं। वहीं, अमेरिका का तर्क है कि इस तरह का व्यापार रूस की युद्ध मशीनरी को वित्तीय संबल देता है।
संभावित असर
विश्लेषकों का कहना है कि अगर अमेरिका चीन पर टैरिफ लगाता है, तो यह पहले से ही तनावपूर्ण बीजिंग-वॉशिंगटन संबंधों को और खराब कर सकता है। इससे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं, व्यापार प्रवाह और ऊर्जा बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है।
भारत के मामले में अतिरिक्त टैरिफ से अमेरिकी बाजार में भारतीय निर्यात प्रभावित हो सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पहले से प्रतिस्पर्धा कड़ी है। वहीं, चीन पर अगर इसी तरह का कदम उठाया गया तो इसका असर विश्व अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से पर महसूस होगा।
आगे क्या?
फिलहाल, ट्रंप प्रशासन ने चीन के मामले में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है। लेकिन भारत पर टैरिफ लागू होने और चीन को चेतावनी देने से यह साफ है कि आने वाले महीनों में अमेरिका, रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर दबाव बढ़ाने की नीति जारी रख सकता है।