उत्तराखंड के हल्द्वानी में मौजूद रामायण वाटिका आकर्षण का केंद्र बनी हुई है l 22 जनवरी से ही इसके उद्घाटन के बाद से ही लोग उत्सुकता वर्ष इसे देखने आ रहे हैं l माना ये जा रहा है कि अब चार धाम यात्रा शुरू होने के बाद लोग और भी ज्यादा तादात में इसे देखने आयेंगे l
क्या है खास
रामायण वाटिका धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व के साथ पर्यावरण का संदेश दे रही है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्री राम वनवास के दौरान भगवान छह अलग-अलग तरह के वनों से होकर गुजरे थे। इस वाटिका में उन वनों से जुड़ी 25 प्रजातियों को संरक्षित किया गया है। इन प्रजातियों का जिक्र अरण्य कांड में है।
चित्रकूट: इस स्थान पर श्रीराम से मिलने के लिए उनके छोटे भाई भरत पहुंचे थे। वाल्मीकि रामायण में यहां आम, नीम, बांस और असना के पेड़ होने की जानकारी है। ये वाटिका में मौजूद हैं।
दंडकारण्य: छत्तीसगढ़ के बस्तर से ओडिसा व तेलंगाना तक का क्षेत्र। श्रीराम ने विरधा समेत कई असुरों का यहां वध किया था। वाल्मीकि रामायण में साल, सागौन, अर्जुन व पडाल का जिक्र। ये पौधे भी वाटिका में हैं।
पंचवटी: महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी का तट। अहंकारी रावण ने इस जंगल में माता सीता का हरण किया था। रामायण में बेल, बरगद, आंवला, अशोक व कपिल की जानकारी। ये पौधे इस वाटिका में नजर आएंगे।
किष्किंधा: यहां श्रीराम की हनुमान व सुग्रीव से मुलाकात हुई। कर्नाटक के बेल्लारी जिले के इस क्षेत्र में मिलने वाले रक्त चंदन, चंदन, धाक व कटहल के पौधे वाटिका में नजर आएंगे।
अशोक वाटिका: माता सीता के हरण के बाद उन्हें इस वाटिका में रखा गया था। वर्तमान में यह श्रीलंका के हकगला वनस्पति उद्यान का हिस्सा है। नागकेसर, चंपा, मौलश्री व सीता अशोक के पौधे वाटिका में दिखेंगे।
द्रोणगिरी: मेघनाथ संग युद्ध में लक्ष्मण के घायल होने पर हनुमान उत्तराखंड में स्थित द्रोणगिरी पर्वत को उठा लाए थे। संजीवनी, संधानी, जीवंती यहां की प्रमुख औषधीय प्रजाति हैं। संजीवनी व जीवंती वाटिका में हैं।