स्वीडन में प्रवासी भारतीयों को किया संबोधित, न्यायपालिका की भूमिका पर दिया जोर
स्टॉकहोम।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने स्वीडन में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि भारत की न्याय व्यवस्था केवल भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह न्याय के भारतीय संकल्प को वैश्विक स्तर पर भी दर्शाती है। उन्होंने कहा कि देश की अदालतों ने कई मामलों में अनिवासी भारतीयों को भी मौलिक अधिकारों की सुरक्षा प्रदान की है।
प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय न्यायपालिका ने हमेशा सिर्फ एक निर्णयकर्ता की भूमिका नहीं निभाई, बल्कि हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज बनने और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने का कार्य भी किया है।
न्यायपालिका: नैतिक आवाज और संवैधानिक रक्षक
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत की न्यायपालिका ने धर्मनिरपेक्षता, समानता और मानवीय गरिमा जैसे मूल्यों को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो भारत की संवैधानिक पहचान की नींव हैं।
उन्होंने बताया कि अनिवासी भारतीयों के लिए न्याय को अधिक सुलभ बनाने के लिए भी न्यायपालिका द्वारा सैद्धांतिक हस्तक्षेप और दूरदर्शी फैसले लिए गए हैं।
प्रवास और भारतीय पहचान
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि आज की वैश्विक दुनिया में, जहां सीमाएं कमजोर हो रही हैं और पहचानें कई बार धुंधली पड़ जाती हैं, ऐसे समय में प्रवासी भारतीयों ने यह साबित किया है कि कोई व्यक्ति भारतीय संस्कृति और मूल्यों से जुड़ा रहकर भी वैश्विक नागरिक बन सकता है।
न्यायपालिका की केंद्रीय भूमिका
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका भारतीय लोकतंत्र के प्रमुख संवैधानिक स्तंभों में से एक है और न्याय को सभी नागरिकों, चाहे वे देश में हों या विदेश में, तक पहुंचाने में इसकी केंद्रीय भूमिका है।