फ्रांसिस के बाद उनका उत्तराधिकारी कौन बनेगा। इस पर दुनिया भर की नजरें टिकी हैं। नए पोप के चुनाव के लिए सात मई का दिन गुप्त मतदान प्रक्रिया शुरू करने के लिए तय किया गया है। कार्डिनल्स का कॉलेज सिस्टिन चैपल में अपने पसंदीदा उम्मीदवारों के लिए तब तक वोट करेगा, जब तक कि एक नाम प्रबल तौर पर सामने न आ जाए, क्योंकि इस मतदान का नतीजा कैथोलिक चर्च और दुनिया के 1.4 अरब बपतिस्मा वाले रोमन कैथोलिकों पर गहरा असर डालेगा।
नया पोप चुनने जा रहे 80 फीसदी कार्डिनल्स को पोप फ्रांसिस ने खुद नियुक्त किया है। ये न केवल पहली बार पोप का चुनाव कर रहे हैं, बल्कि इससे बड़े पैमाने पर वैश्विक नजरिया भी सामने आएगा। इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जब पोप के लिए वोट देने वालों में से आधे से भी कम यूरोपीय होंगे।
कार्डिनल टैगले (67) के पास दशकों का पादरी अनुभव है। वे वेटिकन के लिए राजनयिक या चर्च कानून के विशेषज्ञ के विपरीत लोगों के बीच एक सक्रिय चर्च नेता रहे हैं। फिलीपीन में चर्च का बहुत प्रभाव है। यहां लगभग 80 फीसदीआबादी कैथोलिक है। देश में वर्तमान में कार्डिनल्स कॉलेज के रिकॉर्ड पांच सदस्य हैं।
यह बहुत संभव है कि अगला पोप अफ्रीका से हो। यहां कैथोलिक चर्च लाखों सदस्यों को जोड़ना जारी रखता है। कार्डिनल अम्बोंगो डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो से आने वाले एक प्रमुख उम्मीदवार हैं। वे सात साल तक किंशासा के आर्कबिशप रहे हैं, और उन्हें पोप फ्रांसिस ने कार्डिनल नियुक्त किया था।
यदि तुर्कसन पोप के लिए चुने जाते हैं तो उन्हें प्रभावशाली कार्डिनल तुर्कसन को 1,500 वर्षों में पहला अफ्रीकी पोप होने का गौरव मिलेगा। हालांकि, कार्डिनल अम्बोंगो की तरह उन्होंने दावा किया है कि वे यह पद नहीं चाहते हैं। उन्होंने 2013 में बीबीसी से कहा था,मुझे यकीन नहीं है कि कोई पोप बनने की इच्छा रखता है।
51साल की उम्र से कार्डिनल रहे पीटर एर्डो को यूरोप में चर्च में बहुत सम्मान दिया जाता है। उन्होंने 2006 से 2016 तक दो बार यूरोपीय बिशप सम्मेलनों की परिषद का नेतृत्व किया है। वे अफ्रीकी कार्डिनल्स के बीच अच्छी तरह से जाने जाते हैं और उन्होंने रूढ़िवादी चर्च के साथ कैथोलिक संबंधों पर काम किया है।
केवल 80 साल से कम उम्र के कार्डिनल ही कॉन्क्लेव में मतदान कर सकते हैं, लेकिन एंजेलो स्कोला अभी भी चुने जा सकते हैं। 2013 में फ्रांसिस के पोप चुने जाने के वक्त मिलान के पूर्व आर्कबिशप स्कोला भी इस पद की दौड़ में प्रमुख रहे थे। अब कॉन्क्लेव से पहले उनका नाम फिर से सामने आया है, क्योंकि वे इस सप्ताह बुढ़ापे पर एक किताब प्रकाशित कर रहे हैं।