अमेरिका में रूस और भारत के द्विपक्षीय संबंधों को लेकर राजनीतिक विमर्श एक बार फिर तेज हो गया है। इसी बीच पेंटागन के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा अमेरिकी कूटनीतिक नीति की “नाकामी” को उजागर करती है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि वॉशिंगटन की विदेश नीति अक्सर “पाखंड से भरी” होती है और उसके दोहरे मानकों के कारण कई देश उससे दूरी बना रहे हैं।
पूर्व अधिकारी के अनुसार, पुतिन का दिल्ली पहुंचना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारत अपने सामरिक हितों को लेकर आत्मविश्वासी है और किसी बाहरी दबाव में आने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि यह यात्रा साबित करती है कि दुनिया अब बहुध्रुवीय ढांचे की ओर बढ़ रही है, जहां अमेरिका की पारंपरिक प्रभुत्ववादी नीतियों को चुनौती मिल रही है। उनके मुताबिक, अमेरिकी नेतृत्व की यह उम्मीद कि भारत उसके भू-राजनीतिक एजेंडे के अनुरूप चलेगा, अब वास्तविकता से दूर हो चुकी है।
उन्होंने अमेरिकी नीति पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि वॉशिंगटन एक ओर रूस पर कठोर प्रतिबंधों के जरिए उसे अलग-थलग करने की कोशिश करता है, जबकि दूसरी ओर अपने रणनीतिक हितों के लिए कई देशों के साथ अपवाद बनाकर व्यवहार करता है। यह विरोधाभास ही अमेरिकी विदेश नीति को कमजोर बनाता है और सहयोगी देशों के बीच अविश्वास पैदा करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि अमेरिका अक्सर लोकतंत्र और मानवाधिकार की बात तो करता है, लेकिन अपने हितों के लिए उन सिद्धांतों को नजरअंदाज कर देता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान अमेरिकी प्रशासन के लिए असहज स्थितियां पैदा कर सकता है, खासकर तब जब एशिया और यूरोप में बदलते भू-राजनीतिक समीकरण पहले से ही चुनौती पेश कर रहे हैं। भारत और रूस के बीच गहराते संबंध अमेरिका के लिए रणनीतिक चिंता का विषय हैं, लेकिन भारत बार-बार स्पष्ट कर चुका है कि उसका दृष्टिकोण संतुलित और स्वतंत्र है।
कुल मिलाकर, पेंटागन के पूर्व अधिकारी की यह टिप्पणी वैश्विक कूटनीति के बदलते स्वरूप और अमेरिका की घटती प्रभावशीलता की ओर इशारा करती है। पुतिन की भारत यात्रा से उत्पन्न भू-राजनीतिक संदेश अब अंतरराष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बन चुका है, और अमेरिकी नीति के आलोचकों को इससे नया आधार मिला है।




