नई दिल्ली/कोलंबो: भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में श्रीलंका की महत्वपूर्ण यात्रा पर रवाना हो रहे हैं। श्रीलंका में नई सरकार के गठन और राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के कार्यभार संभालने के बाद भारत की ओर से यह पहला उच्च स्तरीय दौरा है। इस यात्रा को हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की ‘पड़ोस पहले’ (Neighborhood First) और ‘सागर’ (SAGAR) नीति के सुदृढ़ीकरण के रूप में देखा जा रहा है।
यात्रा का मुख्य एजेंडा: द्विपक्षीय संबंधों को नई धार देना
इस दौरे के दौरान विदेश मंत्री का कार्यक्रम काफी व्यस्त है, जिसमें कई रणनीतिक और कूटनीतिक मुद्दे शामिल हैं:
- शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात: जयशंकर कोलंबो में श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके और प्रधानमंत्री हरिनी अमरसूर्या से मुलाकात करेंगे। वे प्रधानमंत्री मोदी का विशेष संदेश और सहयोग का आश्वासन उन्हें सौंपेंगे।
- आर्थिक और निवेश सहयोग: श्रीलंका के आर्थिक संकट के दौर में भारत ने 4 अरब डॉलर से अधिक की सहायता दी थी। अब चर्चा का केंद्र लंबे समय तक चलने वाले आर्थिक प्रोजेक्ट्स होंगे, जिनमें बिजली ग्रिड कनेक्टिविटी और बंदरगाह विकास शामिल है।
- ऊर्जा और कनेक्टिविटी: अडानी समूह और अन्य भारतीय निवेशों के तहत चल रहे ऊर्जा प्रोजेक्ट्स तथा भारत-श्रीलंका के बीच समुद्री व हवाई कनेक्टिविटी को और मजबूत करने पर वार्ता होगी।
प्रमुख रणनीतिक मायने
इस यात्रा के पीछे कई गहरे कूटनीतिक संकेत छिपे हैं, जो दक्षिण एशिया की राजनीति को प्रभावित करेंगे:
- चीन की सक्रियता पर नजर: श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन के बाद चीन अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है। भारत इस दौरे के जरिए यह सुनिश्चित करना चाहता है कि श्रीलंका की सुरक्षा और विदेश नीति भारत के हितों के प्रति संवेदनशील रहे।
- मछुआरों का मुद्दा: तमिलनाडु और श्रीलंका के मछुआरों के बीच अक्सर होने वाले विवाद और गिरफ्तारी का मुद्दा भी मेज पर होगा। भारत इस मानवीय समस्या का स्थायी समाधान ढूंढने की कोशिश करेगा।
- तमिल समुदाय का कल्याण: श्रीलंका में रहने वाले तमिल अल्पसंख्यकों के अधिकारों और 13वें संविधान संशोधन को लागू करने पर भी चर्चा होने की संभावना है।
क्यों खास है यह दौरा?
श्रीलंका के नए राष्ट्रपति दिसानायके को पारंपरिक रूप से वामपंथी विचारधारा का माना जाता है, जिनका झुकाव अतीत में चीन की ओर रहा है। जयशंकर की यह यात्रा इस धारणा को बदलने और नई सरकार के साथ विश्वास बहाली (Trust Building) का एक बड़ा प्रयास है।
“भारत और श्रीलंका के संबंध केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भी हैं। विदेश मंत्री की यह यात्रा नई सरकार के साथ हमारे सहयोग के रोडमैप को अंतिम रूप देगी।” — विदेश मंत्रालय के आधिकारिक सूत्र





