ओडिशा के तटों पर अंडे देने वाले ओलिव रिडले कछुए दुनियाभर में सबसे प्राचीन है। यह न केवल अपने व्यवहार और जैविक प्रवृत्तियों के लिए विशिष्ट हैं, बल्कि आनुवंशिक रूप से भी वैश्विक प्रजातियों में सबसे अलग है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) और सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों की ओर से भारत में समुद्री कछुओं की निगरानी : 2008-2024 विषयक शोध में इसका खुलासा किया है। ओलिव रिडले कछुए समुद्री कछुओं की सबसे छोटी प्रजातियों में से हैं जो वर्ष में एक बार ओडिशा के गहिरमाथा और रुशिकुल्या समुद्र तटों पर सामूहिक रूप से अंडे देने के लिए आते हैं। पिछले महीने रुशिकुल्या और गहिरमाथा में 13 लाख से अधिक कछुओं ने अंडे दिए।
अध्ययन के अनुसार प्रशांत और अटलांटिक महासागर की ओलिव रिडले आबादी, हिंद महासागर की आबादी से लगभग 3-4 लाख साल पहले अलग हो गई थी। इसका अर्थ है कि भारत के तटीय क्षेत्र में पाई जाने वाली ओलिव रिडले आबादी कम से कम 3-4 लाख साल पुरानी हो सकती है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन की पुरानी लहरों के दौरान ये कछुए इस क्षेत्र में जीवित बचे और धीरे-धीरे अन्य महासागरों की ओर प्रवास किया। यह भी संभावना जताई गई है कि करीब 2 लाख साल पहले हिंद महासागर से कुछ कछुए मध्य अमेरिका की ओर चले गए जिससे मेक्सिको और कोस्टा रिका जैसे क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति दर्ज हुई।