भारत के पास दुनिया का बहुत बड़ा बाजार है। चीन और अमेरिका दोनों की नजर हमारे बाजार पर है। भारत इसे रूस और यूरोप बाजारो के सहारे संतुलित करता आया है। अब रूस के नव निर्वाचित राष्ट्रपति ने अमेरिकावाद को आगे रखकर सीधे दरवाजे पर कारोबार की घंटी बजा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका में हैं। देखना है कि वह क्या देकर और क्या लेकर आते हैं? कूटनीति के जानकार भी मान रहे हैं कि प्रधानमंत्री अमेरिका के साथ अगले चार साल के प्रगाढ़ रिश्ते की नींव रखने गए हैं। वह नहीं चाहते कि कोई गलत संदेश जाए और भारत को इसका नुकसान उठाना पड़े। प्रधानमंत्री की इस यात्रा की पिच विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव विक्रम मिश्री, पूर्व विदेश सचिव अमेरिका में भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा ने तैयार की है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इसको लेकर संवेदनशील हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने हालांकि अभी प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर अपने पिछले दौर जैसा जज्बा नहीं दिखाया है।प्रधानमंत्री की यात्रा में राष्ट्रपति ने उनके सम्मान में राजकीय अतिथिभोज के लिए नहीं आमंत्रित किया, बल्कि प्राइवेट डिनर पर आमंत्रित किया है। प्रोटोकॉल से बाहर जाकर गर्मजोशी दिखाने जैसा कोई कार्यक्रम नहीं दिखाई दे रहा है। सब प्रोटोकॉल और रूटीन प्रक्रिया जैसा ही है। भारत के कूट कूटनीति के जानकार इसे अमेरिकी प्रशासन की कूटीतिक संदेश देने की कोशिश के भी रूप में देख रहे हैं।राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रिश्ते की केमिस्ट्री थोड़ा अलग है। प्रधानमंत्री सहज और सरल हैं। अपने विशेष प्रयास से भारतीय हित साधते हैं। वैश्विक मामले में भारत के पास बहुत अनुभवी टीम है। यह टीम लगातार अमेरिका के विश्वसनीय रणनीतिक साझीदार देश होने का संदेश दे रही है। अमेरिका में साऊथ एशिया को लेकर भारत से अच्छे रिश्ते के पैरोकारों की कोई कमी नहीं है। अमेरिका की कंपनियों को भारत के इंजीनियर और प्रोफेशनल्स की दरकार है। चीन से कारोबारी चुनौती को देखते हुए भी भारत की अहमियत है। अमेरिका के लिए वैसे भी भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। भारत के रक्षा क्षेत्र, टेलीकॉम, टेक्नोलॉजी में काफी संभावना है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में भी भारत नए मुकाम हासिल करना चाहता हैं। प्रधानमंत्री फ्रांस में एआई समिट से होकर ही अमेरिका गए हैं।