इस्राइल और ईरान के बीच संघर्ष अब पांचवें दिन पर पहुंच चुका है। दोनों ही देशों ने एक-दूसरे के ऊपर जबरदस्त हमले किए हैं। जहां इस्राइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों से लेकर सैन्य अफसरों तक को एयरस्ट्राइक में निशाना बनाया, वहीं ईरानी सेना की तरफ से बैलिस्टिक मिसाइलों के जरिए इस्राइल पर कहर बरपाया गया है। अब तक की जानकारी के मुताबिक, इस्राइल में 24 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। वहीं, ईरान में 220 लोगों की जान जाने की खबर है। इस पूरे घटनाक्रम पर भारत ने करीब से नजर रखी है। ईरान में फंसे अपने छात्रों को आर्मेनिया के रास्ते निकालने के बाद अब विदेश मंत्रालय ने तेहरान में रह रहे भारतीयों को शहर से बाहर किसी सुरक्षित स्थान पर रुकने को कहा है। इस बीच अमेरिका के भी इस जंग में कूदने की खबरें हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को चेतावनी देते हुए कहा कि ईरान के लोग जल्द से जल्द तेहरान छोड़ दें। ऐसे में यह जानना अहम है कि भारत ने पश्चिम एशिया में उभरी स्थिति के मद्देनजर अब तक कौन से कदम उठाए हैं? इस संघर्ष के पूर्णतः युद्ध का रूप लेने से भारत पर क्या-क्या असर हो सकता है? किन क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा?
. इस्राइल-ईरान के बीच पूरी तरह युद्ध छिड़ जाने का भारत के लिए क्या मतलब?
इस्राइल और ईरान के बीच अगर यह संघर्ष पूरी तरह युद्ध में बदलता है तो इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ने के आसार हैं। इतना ही नहीं दोनों देशों में भारतीयों की अच्छी-खासी संख्या, जो कि पूर्ण युद्ध की स्थिति में खतरे में पड़ सकती है।
पुराने रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं कच्चे तेल के दाम?
अमेरिका की तरफ से लगाए गए प्रतिबंधों के चलते भारत फिलहाल ईरान से कच्चा तेल आयात नहीं करता। लेकिन दुनियाभर में तेल के एक अहम सप्लायर के तौर पर चिह्नित ईरान से तेल की आपूर्ति रुकने से ओपेक देशों पर इसका भार पड़ेगा। नतीजतन तेल उत्पादक देश कच्चे तेल के दामों को बढ़ा सकते हैं। मौजूदा समय की बात की जाए तो ब्रेंट क्रूड 74-75 डॉलर प्रति बैरल पर है, जो कि पिछले बंद से करीब 1.5 फीसदी ज्यादा है।
हालांकि, भारत की चिंता ईरान की तरफ से पश्चिमी देशों को दी गई एक धमकी है। ईरान ने कहा है कि वह होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर देगा। लाल सागर के अलावा इस बार होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर गुजरने वाला मार्ग एक ऐसा कारक है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। वैश्विक पेट्रोलियम पदार्थों की खपत का 21% इसी मार्ग से गुजरता है। भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया इस मार्ग से कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए शीर्ष गंतव्य हैं। ओमान भी भारत को तरलीकृत प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए इसी मार्ग का इस्तेमाल करता है।
वैश्विक व्यापार में पहले ही गिरावट की आशंका
विश्लेषकों का कहना है कि यह युद्ध अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उच्च टैरिफ की घोषणा के बाद वैशि्वक व्यापार पर पड़ने वाले दबाव को और बढ़ाता है। टैरिफ के असर को देखते हुए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) पहले ही आशंका जता चुका है कि 2025 में वैश्विक व्यापार में 0.2 फीसदी की गिरावट आएगी। इससे पहले 2.7 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया था।