जयपुर। देश की सुरक्षा व्यवस्था को नई दिशा देने और भविष्य के युद्धों की तैयारी को लेकर देश का पहला ‘सिक्योरिटी सिनर्जी सेमिनार’ जयपुर में आयोजित किया गया। सेमिनार में सेना, वायुसेना, नौसेना, पुलिस और खुफिया एजेंसियों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का उद्देश्य सुरक्षा बलों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना और बदलते वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य के अनुरूप नई रणनीतियों पर चर्चा करना था।
इस महत्वपूर्ण सेमिनार में भारत के तीनों सेनाओं के अधिकारी, राज्य पुलिस प्रमुख, गृह मंत्रालय के प्रतिनिधि, रक्षा विशेषज्ञ और तकनीकी सलाहकार एक ही मंच पर जुटे। आयोजन का मुख्य विषय था — ‘भविष्य की सुरक्षा चुनौतियां और समेकित प्रतिक्रिया प्रणाली’। सेमिनार में साइबर सुरक्षा, ड्रोन वारफेयर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित निगरानी प्रणाली और आधुनिक युद्धक तकनीकों पर विस्तृत चर्चा की गई।
वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने कहा कि आने वाले वर्षों में युद्ध का स्वरूप पारंपरिक न रहकर टेक्नोलॉजी-आधारित और मल्टी-डोमेन होगा, जहां साइबर, स्पेस और ड्रोन तकनीकें निर्णायक भूमिका निभाएंगी। ऐसे में सेना, पुलिस और खुफिया एजेंसियों के बीच समन्वय और सूचना साझाकरण की व्यवस्था को और मजबूत करना आवश्यक है।
सेमिनार में विशेषज्ञों ने बताया कि भविष्य के संघर्षों में ड्रोन और साइबर अटैक सबसे बड़ी चुनौती बन सकते हैं। इसलिए देश को इन क्षेत्रों में स्वदेशी तकनीक के विकास और रियल-टाइम डाटा शेयरिंग सिस्टम को प्राथमिकता देनी होगी। साथ ही, एआई (Artificial Intelligence) और मशीन लर्निंग की मदद से दुश्मन की गतिविधियों की अग्रिम पहचान संभव हो सकेगी।
सेमिनार में यह भी सुझाव दिया गया कि भारत को अपनी सुरक्षा नीति में ‘सिक्योरिटी सिनर्जी मॉडल’ को औपचारिक रूप से अपनाना चाहिए, जिससे तीनों सेनाओं, अर्धसैनिक बलों और पुलिस के बीच वास्तविक समय में समन्वय स्थापित हो सके। इस मॉडल के तहत आपात स्थितियों में सभी बलों की एकीकृत प्रतिक्रिया प्रणाली काम करेगी।
सेमिनार के दौरान रक्षा अनुसंधान संगठन (DRDO) और निजी रक्षा कंपनियों ने अपने अत्याधुनिक उपकरणों, ड्रोन सिस्टम और साइबर सुरक्षा तकनीकों की प्रदर्शनी लगाई। इसमें देश में विकसित कई स्वदेशी प्रोटोटाइप ने प्रतिभागियों का ध्यान खींचा।
अंत में विशेषज्ञों ने सिफारिश की कि सुरक्षा एजेंसियों के बीच साझा प्रशिक्षण, कमांड सेंटर और डेटा इंटीग्रेशन प्लेटफॉर्म की स्थापना की जानी चाहिए, ताकि संकट की घड़ी में देश की प्रतिक्रिया और भी तेज और प्रभावी हो सके।
सेमिनार के आयोजकों का कहना है कि इस तरह के कार्यक्रम राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को नई दिशा देने और भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार रहने की दिशा में अहम साबित होंगे।





