बीजिंग। चीन ने अपनी ताकत का जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए भव्य सैन्य परेड का आयोजन किया। इस परेड को न केवल क्षेत्रीय प्रभुत्व का इशारा माना जा रहा है, बल्कि अमेरिका और विशेष रूप से पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को सीधी चुनौती भी समझा जा रहा है। परेड के दौरान चीन ने अत्याधुनिक मिसाइलों, ड्रोन और हाई-टेक हथियारों का प्रदर्शन कर यह संदेश देने की कोशिश की कि बदलते भू-राजनीतिक हालात में वैश्विक शक्ति संतुलन नए रूप ले रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस परेड में केवल चीन की सैन्य क्षमता का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि इसमें रूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे अमेरिका विरोधी देशों की अप्रत्यक्ष एकजुटता का संकेत भी झलक रहा था। विश्लेषकों का मानना है कि यह परेड एक तरह से अमेरिका के धुर विरोधियों की सामूहिक शक्ति का प्रतीक बन गई, जिसने वॉशिंगटन को साफ संदेश दिया है कि दुनिया अब एकध्रुवीय व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने संबोधन में कहा कि चीन किसी भी बाहरी दबाव या धमकी के आगे नहीं झुकेगा और उसकी सेना हर परिस्थिति में देश की संप्रभुता और सुरक्षा की रक्षा के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी दोहराया कि एशिया और प्रशांत क्षेत्र में अब संतुलन बनाने का समय आ गया है।
अमेरिका और चीन के बीच पहले से ही व्यापार, तकनीक और दक्षिण चीन सागर के मुद्दों को लेकर तनाव गहराया हुआ है। ऐसे में यह परेड दोनों देशों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा को और स्पष्ट करती है। अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रदर्शन केवल शक्ति प्रदर्शन तक सीमित नहीं, बल्कि कूटनीतिक संदेश है कि वैश्विक राजनीति में नए ध्रुव उभर रहे हैं।
परेड में चीन ने अपनी हाइपरसोनिक मिसाइलों, उन्नत लड़ाकू विमानों और अत्याधुनिक नौसैनिक प्रणालियों को भी प्रदर्शित किया। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इन हथियारों का उद्देश्य यह बताना था कि चीन अब केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर अमेरिका को चुनौती देने की स्थिति में है।
कूटनीतिक हलकों में इस परेड को उस व्यापक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसके जरिए चीन अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर नई वैश्विक शक्ति समीकरण गढ़ने की कोशिश कर रहा है।