संविधान दिवस के अवसर पर देशभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें राष्ट्रीय नेताओं, न्यायपालिका एवं सामाजिक प्रतिनिधियों ने संविधान के महत्व और उसकी मूल भावना पर अपने विचार साझा किए। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद भवन परिसर में आयोजित मुख्य समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संविधान न केवल देश का मार्गदर्शक दस्तावेज है, बल्कि वह ‘गुलामी की मानसिकता को खत्म करता है’ और नागरिकों को स्वतंत्र, समान और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण का संबल प्रदान करता है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि संविधान ने देश को दिशा, दृष्टि और लोकतांत्रिक आधार दिया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संविधान सिर्फ अधिकार नहीं देता, बल्कि कर्तव्यों के पालन की भी सीख देता है। उन्होंने देशवासियों से आह्वान किया कि वे संविधान के मूल्यों को अपने दैनिक जीवन में अपनाएं और राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाएं।
समारोह में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने भी संविधान के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में कहा कि संविधान भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का आधार स्तंभ है और इसकी शक्तियों ने देश को निरंतर आगे बढ़ने की क्षमता दी है। उन्होंने कहा कि संविधान न केवल शासन प्रणाली को दिशा देता है, बल्कि नागरिकों को अधिकारों के साथ जिम्मेदारियों का एहसास भी कराता है।
मुख्य न्यायाधीश ने अपने संबोधन में न्यायपालिका की जिम्मेदारी का उल्लेख करते हुए कहा कि संविधान न्याय व्यवस्था की आत्मा है, और अदालतों का दायित्व है कि वे हर नागरिक के मूलभूत अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि संविधान ने शक्तियों का संतुलन बनाए रखा है और यह सुनिश्चित किया है कि लोकतंत्र हमेशा मजबूत रहे।
इसके अलावा कई मंत्रियों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सांसदों ने भी संविधान दिवस पर संदेश जारी कर संविधान निर्माताओं को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि भारत की विविधता और एकता का आधार हमारा संविधान है, जिसने देश को एक साझा पहचान और मूल्य प्रणाली प्रदान की है।
देशभर के शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी कार्यालयों में भी संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया गया और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए। नागरिकों, शिक्षकों और छात्रों ने संविधान के सिद्धांतों को जानने और समझने में गहरी रुचि दिखाई।





