Wednesday, December 31, 2025

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खाड़ी देशों में बढ़ा तनाव: सऊदी अरब की सख्त चेतावनी के बाद UAE ने यमन से वापस बुलाई अपनी सेना

रियाद/अबू धाबी: मध्य-पूर्व (Middle East) की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है। सऊदी अरब द्वारा दी गई कथित कूटनीतिक धमकी और कड़े रुख के बाद संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने यमन में जारी संघर्ष से अपनी सेना को पूरी तरह वापस बुलाने का निर्णय लिया है। दशकों से सहयोगी रहे इन दो शक्तिशाली खाड़ी देशों के बीच उपजे मतभेदों ने अब एक नया मोड़ ले लिया है, जिससे यमन युद्ध की दिशा और क्षेत्रीय गठबंधन दोनों प्रभावित होने की संभावना है।

सऊदी अरब की नाराजगी की मुख्य वजह

विशेषज्ञों के अनुसार, सऊदी अरब इस बात से नाराज था कि UAE यमन के दक्षिणी हिस्सों में अपना प्रभाव बढ़ा रहा था और उन अलगाववादी समूहों का समर्थन कर रहा था, जो सऊदी समर्थित यमन सरकार के हितों के खिलाफ थे। सऊदी अरब ने कथित तौर पर चेतावनी दी थी कि यदि UAE ने अपनी स्वतंत्र नीतियों पर अंकुश नहीं लगाया, तो रियाद उसके खिलाफ सख्त व्यापारिक और आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है। इसी दबाव का परिणाम है कि अबू धाबी ने अपने सैनिकों की वापसी का बड़ा कदम उठाया है।

यमन युद्ध और बढ़ती खाई

यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ शुरू हुए इस अभियान में सऊदी अरब और UAE प्रमुख सहयोगी थे। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के रणनीतिक लक्ष्य अलग होते गए:

  • सऊदी अरब का लक्ष्य: हूती विद्रोहियों को पूरी तरह समाप्त कर सीमा पर सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • UAE का लक्ष्य: लाल सागर के बंदरगाहों पर नियंत्रण और रणनीतिक समुद्री मार्गों पर अपना दबदबा बनाना। इस विरोधाभास ने दोनों देशों के बीच के भरोसे को कमजोर कर दिया, जो अब सैन्य वापसी के रूप में सामने आया है।

क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था और तेल बाजार पर असर

सऊदी अरब और UAE के बीच यह टकराव केवल सैन्य नहीं बल्कि आर्थिक भी है। दोनों देश खुद को मध्य-पूर्व के सबसे बड़े व्यापारिक और पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित करने की होड़ में हैं। सऊदी अरब की ‘विजन 2030’ नीति के तहत विदेशी कंपनियों को रियाद में मुख्यालय बनाने का दबाव और तेल उत्पादन की सीमाओं को लेकर ओपेक (OPEC) में हुई बहस ने इस आग में घी डालने का काम किया है।

यमन के भविष्य पर क्या होगा प्रभाव?

UAE की सेना के हटने से यमन के दक्षिणी क्षेत्रों में सुरक्षा का वैक्यूम पैदा हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सऊदी अरब उन क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत कर पाएगा या फिर हूती विद्रोही इस स्थिति का फायदा उठाकर अपनी गतिविधियों को और तेज करेंगे। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि इस सैन्य वापसी से शांति वार्ताओं का एक नया दौर शुरू हो सकता है, लेकिन यह पूरी तरह सऊदी अरब के अगले कदम पर निर्भर करेगा।

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