Monday, June 30, 2025

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कोविड के सटीक इलाज की नई राह, पहचाने गंभीरता के नौ संकेतक; अध्ययन में डेल्टा स्वरूप मिला सबसे खतरनाक

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), इंदौर के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के प्रभावों को लेकर एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है, जिससे इस महामारी के सटीक निदान और प्रभावी उपचार की दिशा में नई संभावनाएं खुली हैं। इसमें डेल्टा वेरिएंट को सबसे अधिक खतरनाक पाया गया है।

यह शोध प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ प्रोटिओम रिसर्च में प्रकाशित हुआ है और इसे आईआईटी इंदौर, केआईएमएस-भुवनेश्वर और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वैज्ञानिकों ने मिलकर अंजाम दिया। अध्ययन में भारत में कोविड की पहली और दूसरी लहर के दौरान संक्रमित 3,134 मरीजों के नैदानिक आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इन आंकड़ों की मदद से मशीन लर्निंग तकनीक के जरिये ऐसे नौ जैव-चिकित्सकीय संकेतकों की पहचान की गई, जो बीमारी की गंभीरता को समझने में सहायक हैं। इनमें सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी), डी-डाइमर, फेरिटिन, न्यूट्रोफिल, श्वेत रक्त कोशिका (डब्ल्यूबीसी) की गिनती, लिम्फोसाइट्स, यूरिया, क्रिएटिन और लैक्टेट डिहाइड्रोजनेज (एलडीएच) जैसे बायोमार्कर शामिल हैं। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने मानव फेफड़े और कोलन कोशिकाओं को अलग-अलग कोविड वेरिएंट के स्पाइक प्रोटीन के संपर्क में लाकर यह अध्ययन किया कि ये वायरस शरीर में कैसे रासायनिक और हार्मोनल असंतुलन पैदा करते हैं।

शोधकर्ता मानते हैं कि इस अध्ययन के जरिये कोरोना के लंबे समय तक बने रहने वाले लक्षणों (लॉन्ग कोविड) को बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा। उम्मीद बंधी है कि कोविड-19 के अलग-अलग वेरिएंट द्वारा शरीर पर डाले गए प्रभावों की सूक्ष्म समझ से न सिर्फ बेहतर निदान तकनीक विकसित होंगी, बल्कि इससे जुड़ी जटिलताओं के इलाज के लिए व्यक्तिगत चिकित्सा दृष्टिकोण (प्रेसिजन मेडिसिन) को भी बल मिलेगा।

विशेष रूप से डेल्टा वेरिएंट को शरीर के चयापचय और हार्मोनल सिस्टम को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला पाया गया। शोध में यह खुलासा हुआ कि डेल्टा वेरिएंट ने थायरॉयड हार्मोन और कैटेकोलामाइन (तनाव से जुड़े हार्मोन) के उत्पादन को प्रभावित किया, जिससे कई मरीजों में साइलेंट हार्ट फेलियर और थायरॉयड डिसफंक्शन जैसे जटिल लक्षण देखने को मिले। एक साथ किए गए मेटा विश्लेषण ने भी इस निष्कर्ष की पुष्टि की और बताया कि इस वेरिएंट ने यूरिया और अमीनो एसिड चयापचय प्रक्रिया में बाधा डाली। इस बहुआयामी अध्ययन में मल्टी-ओमिक्स और रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया, जिससे वायरस के आणविक प्रभावों को गहराई से समझा जा सका।

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