चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने बुधवार को नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने भविष्य के युद्ध के बारे में बात की, और तकनीकी प्रगति द्वारा संचालित आधुनिक युद्ध में परिवर्तनकारी परिवर्तनों पर प्रकाश डाला। उन्होंने भविष्य के युद्ध को नया आकार देने वाले तीन प्रमुख तकनीकी रुझानों की पहचान की, जिनमें रोबोटिक्स और स्वचालन, गति और युद्ध की बुद्धिमत्ता शामिल हैं।
सीडी देशमुख सभागार में बोलते हुए सीडीएस चौहान ने युद्ध की उभरती प्रकृति और भविष्य के संघर्षों के लिए भारत की तैयारियों के बारे में विस्तार से बताया।
सीडीएस चौहान ने कहा कि अब तक युद्ध हमेशा दो इंसानों के बीच होता आया है। एक इंसान बेहतर हथियारों से लैस हो सकता है। उसके शरीर का कवच बेहतर हो सकता है। वह तलवार, भाला, या आधुनिक राइफल से अधिक सक्षम हो सकता है, और शायद वह अधिक गतिशील भी हो सकता है, लेकिन असल में, लड़ाई दो इंसानों के बीच ही होती थी। अब हम एक नए युग में हैं, और कल युद्ध इंसानों और मशीनों के बीच हो सकता है।
दूसरी प्रवृत्ति, ‘सेलेरिटी’ पर चर्चा करते हुए उन्होंने हाइपरसोनिक्स, ड्रोन और कक्षीय रक्षा प्रणालियों में प्रगति का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि दूसरी प्रवृत्ति जो मैंने पहचानी है वह गति है, जो वेग और गति से संबंधित है। यह हाइपरसोनिक्स- ग्लाइड और क्रूज- ग्लोब का चक्कर लगाने में सक्षम फ्रैक्शनल ऑर्बिटल सिस्टम और स्टील्थ प्रौद्योगिकियों जैसी प्रौद्योगिकियों द्वारा संचालित किया जा रहा है। छोटा क्रॉस-सेक्शन ड्रोन, जो अक्सर झुंड संरचनाओं में तैनात होते हैं, सशस्त्र, अदृश्य, अश्रव्य और ज्ञानी नहीं होते जा रहे हैं, जिससे वे लक्ष्य से बाहर हो रहे हैं।
उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अन्य उन्नत तकनीकों के माध्यम से युद्धक्षेत्र के डिजिटलीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए बुद्धिमत्ता की तीसरी प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बेहतर तकनीक हमेशा सैनिकों के मनोबल और प्रेरणा को प्रभावित करती है। अगर आपके पास बेहतर हथियार और गोला-बारूद हैं, तो आपका मनोबल स्वाभाविक रूप से ऊंचा होता है। इसके अलावा, अगर आपके पास बेहतर तकनीक है, तो आपके पास कई तरह के विकल्प होते हैं। मेरी राय है कि युद्ध अब तेजी से बुद्धिमान, डिजिटलीकृत, विकेंद्रीकृत, पारदर्शी और बहु-डोमेन (कई क्षेत्रों में होने वाला) बनता जा रहा है। युद्ध अब एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है। यूरोप और पश्चिमी एशिया में हुए युद्धों ने दूसरे हिस्सों में संघर्षों को भी प्रभावित किया है। यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अब तक का सबसे हिंसक दशक हो सकता है।