“एक देश, एक चुनाव” विधेयक पर चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की अहम बैठक आज संसद भवन के मुख्य समिति कक्ष (एमसीआर) में होगी। बैठक दोपहर 3 बजे शुरू होगी, जिसमें विशेषज्ञों के एक पैनल को अपने विचार साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया है।
बैठक में शामिल विशेषज्ञों में दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस के प्रो. जी. गोपाल रेड्डी, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय की प्रो. सुषमा यादव, पूर्व राज्यसभा सदस्य डॉ. विनय सहस्रबुद्धे, राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद की प्रो. शीला राय और गुवाहाटी विश्वविद्यालय के प्रो. ननी गोपाल महंत होंगे।
बैठक का मुख्य एजेंडा देशभर में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं और चुनौतियों पर विमर्श करना है।
जेपीसी की आगामी बैठक 19 अगस्त को होगी, जिसमें भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना से भी इस मुद्दे पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
इससे पहले, 30 जुलाई को हुई बैठक में पूर्व राज्यसभा सदस्य और 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह तथा अशोका विश्वविद्यालय की अर्थशास्त्र की प्रोफेसर डॉ. प्राची मिश्रा ने प्रस्तुति दी थी। उन्होंने एक साथ चुनाव कराने के संभावित आर्थिक लाभ और सामाजिक-प्रशासनिक प्रभाव पर प्रकाश डाला था।
उनके अनुसार—
• एक साथ चुनाव से वास्तविक जीडीपी वृद्धि में तेजी आ सकती है।
• चुनाव के बाद राजकोषीय घाटा घटने और पूंजीगत व्यय बढ़ने की संभावना है।
• बार-बार होने वाले चुनावों से आर्थिक गतिविधि में व्यवधान, प्रवासी श्रमिकों की आवाजाही पर असर और प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन में गिरावट आती है।
• चुनावी माहौल में अपराध दर बढ़ने, आदर्श आचार संहिता के बार-बार लागू होने, लोकलुभावन वादों और मुफ्त उपहारों में वृद्धि तथा कृषि नीति की निश्चितता पर असर पड़ता है।
गौरतलब है कि 1986 से अब तक देश में हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहे हैं। इस प्रस्तावित प्रणाली से चुनावी प्रक्रिया अधिक संकेन्द्रित और संसाधन-कुशल बनने की उम्मीद जताई जा रही है, हालांकि इसके संविधानिक, प्रशासनिक और राजनीतिक पहलुओं पर गहन मंथन जरूरी है।