Wednesday, August 6, 2025

Top 5 This Week

Related Posts

उत्तराखंड में बारिश का कहर: बढ़ा जलस्तर, बाधित मार्ग, टूटी धारण क्षमता की चेतावनी

उत्तराखंड में पिछले दो दिनों से जारी मूसलधार बारिश ने राज्य के कई ज़िलों में जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। भारी वर्षा के कारण नदियों का जलस्तर खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है, जबकि अनेक मार्ग मलबा और पेड़ों के गिरने से बाधित हो गए हैं। मौसम विभाग ने पहाड़ी क्षेत्रों में आगामी 6 अगस्त तक भारी बारिश की चेतावनी जारी की है।
देहरादून, हरिद्वार, टिहरी, चमोली और उत्तरकाशी ज़िलों में एहतियातन स्कूलों को बंद रखा गया है।
बदरीनाथ हाईवे खुला, पर खतरा बरकरार
कर्णप्रयाग में उमटा के पास पहाड़ी से मलबा आने के कारण बदरीनाथ हाईवे बाधित हो गया था। सुबह लगभग 5:45 बजे मार्ग को खोल दिया गया, जिससे फंसे हुए वाहनों को राहत मिली। हालांकि अलकनंदा और पिंडर नदियों के जलस्तर में वृद्धि के चलते क्षेत्र में खतरा बना हुआ है। मलबा हटाने का कार्य अभी भी जारी है।
नई टिहरी के रोतुकीबेली क्षेत्र में नगुण-भवान मार्ग पर एक विशाल पेड़ गिरने से मार्ग अवरुद्ध हो गया, जिससे स्थानीय लोगों की आवाजाही प्रभावित हो रही है।
यमुनोत्री घाटी में बिगड़ते हालात
यमुनोत्री घाटी में लगातार तीसरे दिन बारिश जारी है। यमुना नदी और उसकी सहायक धाराओं में उफान के चलते स्याना चट्टी क्षेत्र में मलबे और पत्थरों के बहाव ने हालात गंभीर बना दिए हैं। यमुनोत्री हाईवे पर कई स्थानों पर मलबा जमा होने और सड़क धंसने के कारण आवागमन पूरी तरह ठप है।
गंगा का बढ़ता जलस्तर
गंगा नदी का जलस्तर भी लगातार बढ़ रहा है। स्वर्गाश्रम स्थित परमार्थ निकेतन घाट का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है और नदी का प्रवाह शिव मंच के नीचे से होकर बह रहा है। लोहे की सुरक्षा ग्रिलें भी टूट चुकी हैं। त्रिवेणी घाट पर गंगा अभी डेंजर लेवल से लगभग 30 सेंटीमीटर नीचे बह रही है, लेकिन जलस्तर में निरंतर वृद्धि चिंता का विषय है।

धारण क्षमता की सीमा पर खड़ा उत्तराखंड
उत्तरकाशी, जिसे गंगा और यमुना जैसे महानदियों के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है, आज बार-बार प्राकृतिक आपदाओं का केंद्र बनता जा रहा है। खीर गंगा, असी गंगा, राणों की गाड़ और गंगनानी जैसी सहायक नदियाँ रौद्र रूप में बह रही हैं।
स्थानीय जनों के अनुसार, खीर गंगा का बहाव इस बार 1978 जैसी तबाही की पुनरावृत्ति है। उत्तरकाशी हमेशा से भूकंप और भूस्खलन के लिए संवेदनशील ज़ोन में रहा है। 1991 के भूकंप के बाद भूकंपरोधी निर्माण और मास्टर प्लान पर चर्चा तो हुई, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस कार्य नहीं हुआ।
विकास की आड़ में अनदेखी
नदियों के किनारे अनियंत्रित अतिक्रमण, बहुमंजिला इमारतों का निर्माण और मानकों की अनदेखी आज पूरे राज्य में एक सामान्य परिपाटी बन चुकी है। चमोली, रुद्रप्रयाग और श्रीनगर जैसे शहरों में भी यही स्थिति बनी हुई है।
हाल ही में हाईकोर्ट ने नदियों से 200 मीटर के भीतर निर्माण पर रोक का आदेश दिया है, जिसे अब सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
पहाड़ दरक रहे, पेड़ कम हो रहे
राज्य में भूस्खलन की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। नदियों का प्रवाह अपनी राह छोड़ मनमाने ढंग से बहने लगा है। पेड़ों की घटती संख्या और निर्माण की बेतरतीबी आने वाले बड़े संकट की चेतावनी दे रहे हैं।

Popular Articles