उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के धराली क्षेत्र में हाल ही में आई प्राकृतिक आपदा के बाद 70 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा राहत एवं बचाव कार्य युद्धस्तर पर जारी हैं। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से टेलीफोन पर बातचीत कर राहत कार्यों की स्थिति की जानकारी ली।
मुख्यमंत्री धामी ने प्रधानमंत्री को अवगत कराया कि लगातार हो रही भारी बारिश के बावजूद राज्य सरकार और सभी संबंधित एजेंसियां पूरी तत्परता से राहत-बचाव कार्यों में जुटी हैं। कुछ क्षेत्रों में कठिनाइयाँ बनी हुई हैं, लेकिन समन्वित प्रयासों से प्रभावितों को त्वरित सहायता पहुँचाई जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्र सरकार की ओर से हरसंभव सहयोग का आश्वासन दिया।
यमुनोत्री घाटी में हालात गंभीर
यमुनोत्री घाटी में लगातार तीसरे दिन मूसलधार बारिश जारी है, जिससे यमुना और उसकी सहायक नदियों का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर चुका है। स्याना चट्टी क्षेत्र में कुपड़ा खड्ड और यमुना नदी में मलबे और पत्थरों के तेज बहाव ने स्थानीय निवासियों की चिंता बढ़ा दी है। मलबा और भूस्खलन के कारण यमुनोत्री हाईवे कई स्थानों पर बंद पड़ा है, जिससे यातायात पूरी तरह बाधित है।
बदरीनाथ और गंगोत्री हाईवे पर भी संकट
नरेंद्रनगर के पास प्लास्डा चौकी से आगे मलबे में एक इनोवा वाहन फंस गया था, जिसे कुछ समय बाद सुरक्षित निकाल लिया गया। कर्णप्रयाग के पास उमटा क्षेत्र में बदरीनाथ हाईवे पर पहाड़ी से मलबा गिरने से मार्ग अवरुद्ध हो गया था, जिसे सुबह 5:45 बजे खोला गया, लेकिन मलबा हटाने का कार्य अब भी जारी है।
उत्तरकाशी में नेताला से भटवाड़ी के पापड़गाड तक दो स्थानों पर सड़क धंसी हुई है। गंगोत्री हाईवे पर नेताला और मनेरी-ओंगी के बीच नदी के कटाव से सड़क पर खतरा बना हुआ है। पापड़गाड में आज मार्ग खुलने की संभावना कम है।
2013 जैसी आपदा का दोहराव
आईआईटी रुड़की के हाइड्रोलॉजी विभाग के वैज्ञानिक प्रोफेसर अंकित अग्रवाल के अनुसार, उत्तरकाशी में आई यह आपदा वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई जल प्रलय जैसी प्रतीत होती है। दोनों घटनाओं का मुख्य कारण भूमध्य सागर से उठने वाला पश्चिमी विक्षोभ रहा, जो हिमालय से टकराकर बादल फटने जैसी घटनाओं को जन्म देता है।
प्रो. अग्रवाल का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते अब पश्चिमी विक्षोभ और मानसून की गतिविधियाँ हिमालय क्षेत्र में अधिक तीव्र हो रही हैं। इसी तरह की स्थिति 2013 में केदारनाथ में भी देखी गई थी।
उल्लेखनीय है कि प्रो. अग्रवाल जर्मनी की पॉट्सडैम यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर एक इंडो-जर्मन परियोजना पर कार्यरत हैं, जिसका उद्देश्य भारतीय हिमालयी क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं — विशेषकर बादल फटना और अतिवृष्टि — के जोखिम का आकलन और पूर्वानुमान विकसित करना है।
उत्तरकाशी आपदा: लापता 70 लोगों की तलाश में राहत-बचाव कार्य जारी
