नई दिल्ली: हाल ही में जारी पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (Environmental Performance Index – EPI) की रिपोर्ट ने भारत के नीति निर्माताओं और पर्यावरणविदों के बीच चिंता पैदा कर दी है। दुनिया के 180 देशों की इस सूची में भारत 176वें स्थान पर रहा है, जो यह दर्शाता है कि पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में अभी लंबी राह तय करना बाकी है। वहीं, इस इंडेक्स में डेनमार्क और एस्टोनिया जैसे यूरोपीय देशों ने एक बार फिर शीर्ष स्थान हासिल कर दुनिया के सामने आदर्श प्रस्तुत किया है।
क्या है ईपीआई रैंकिंग और कैसे होती है गणना?
ईपीआई रैंकिंग येल और कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की जाती है। यह इंडेक्स देशों को उनके पर्यावरण स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र की जीवन शक्ति और जलवायु नीति के आधार पर मापता है।
- प्रमुख मानक: वायु गुणवत्ता, जल संसाधन, अपशिष्ट प्रबंधन, जैव विविधता और कार्बन उत्सर्जन की स्थिति।
- यूरोपीय देशों की सफलता: रैंकिंग में शीर्ष 10 में लगभग सभी यूरोपीय देश शामिल हैं। डेनमार्क (प्रथम) की सफलता के पीछे उसका कार्बन न्यूट्रल होने का लक्ष्य और नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) का व्यापक उपयोग है।
भारत की स्थिति: चुनौतियाँ और चिंता के कारण
भारत की कम रैंकिंग के पीछे कई प्रमुख कारण बताए गए हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है:
- वायु प्रदूषण: भारत के शहरों में पीएम 2.5 का बढ़ता स्तर स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है।
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता: कोयले पर आधारित ऊर्जा की उच्च निर्भरता कार्बन उत्सर्जन को कम करने में बाधा बन रही है।
- अपशिष्ट प्रबंधन: प्लास्टिक कचरे का निपटान और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्रों में अभी भी बुनियादी ढांचे की कमी है।
- जैव विविधता का ह्रास: तेजी से होते शहरीकरण के कारण वनों की कटाई और वन्यजीवों के आवास का नष्ट होना एक गंभीर विषय है।
रैंकिंग के मायने: भारत के लिए ‘वेक-अप कॉल’
इस रैंकिंग में निम्न स्थान पर होने का मतलब यह नहीं है कि भारत प्रयास नहीं कर रहा है, बल्कि यह बढ़ती आबादी और औद्योगिक मांग के बीच कड़े मानकों की आवश्यकता को दर्शाता है।
- नीतिगत बदलाव की जरूरत: विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को ‘नेट जीरो’ लक्ष्य की ओर अपनी गति और तेज करनी होगी।
- वैश्विक तुलना: भारत का स्कोर पड़ोसी देशों और समान अर्थव्यवस्था वाले देशों की तुलना में भी काफी कम रहा है, जिससे कूटनीतिक स्तर पर भी पर्यावरण छवि पर प्रभाव पड़ता है।
सरकार का पक्ष: रैंकिंग की पद्धति पर सवाल
हालांकि, भारत सरकार ने पूर्व में ऐसी कई रैंकिंग्स को खारिज किया है। सरकार का तर्क है कि ईपीआई के कुछ मानक विकासशील देशों की जमीनी हकीकत और ऐतिहासिक उत्सर्जन (Historical Emissions) को नजरअंदाज करते हैं। सरकार के अनुसार, भारत सोलर एनर्जी और ‘लाइफ’ (LiFE – Lifestyle for Environment) जैसे अभियानों के जरिए सतत विकास की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है।
इस रिपोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि आर्थिक विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना अब केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि भविष्य की अनिवार्यता है।





