भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद तब की यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार और नीतिगत गलतियों के कारण बैंकों का बुरा कर्ज बहुत बढ़ गया, जो बाद में गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) बन गया। कांग्रेस शासन में ही 2013 में आरबीआई गवर्नर बनाए गए राजन ने यह भी कहा कि पद संभालने के बाद उन्होंने स्थिति संभालने की कोशिश की, जिसमें 2014 में वित्त मंत्री बने अरुण जेटली ने उनका साथ दिया। राजन ने एक साक्षात्कार में यूपीए का नाम लिए बिना कहा, भारत में वैश्विक वित्तीय संकट के अलावा तब भ्रष्टाचार भी समस्या थी। परियोजनाओं को मंजूरी मिलने में देरी होती थी। पर्यावरण मंजूरी भी देर से आती थी। जमीन नहीं मिल पाती थी। इन वजहों से परियोजनाएं पूरी नहीं हो पाती थीं और इनके लिए कर्ज देने वाले बैंकों की रकम फंस जाती थी। यह रकम बाद में एनपीए हो जाता था। जब आपकी रकम बुरे कर्ज में फंस जाती है, तो आप अच्छा कर्ज देने की स्थिति में भी नहीं रहते हैं। इससे पूरे सिस्टम पर दबाव आ जाता है।इसके साथ ही राजन ने कहा कि 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट से पहले बैंक खुलकर रकम बांटते थे। वे चेकबुक लेकर कारोबारियों के पीछे घूमते थे कि भाई कितना पैसा चाहिए। ऐसा इसलिए था कि संकट से पहले परियोजना समय पर पूरी होती थीं और बैंकों को पैसा मिल जाता था। इस चक्कर में वे कई बार जरूरी प्रक्रिया भी पूरी नहीं करते थे, लेकिन आर्थिक संकट ने स्थिति बदल दी। आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा, 2008 के आर्थिक संकट से पहले बैंक खुलकर पैसा बांट रहे थे। बिना जरूरी प्रक्रिया पूरी किए दिए गए इन कर्ज के बाद आर्थिक संकट ने हालात बदल दिए। रही-सही कसर सरकार की गलत नीतियों ने पूरी कर दी। राजन ने कहा, मुझसे पहले जो गवर्नर थे, उन्होंने बैंकों के बुरे कर्ज के लिए मोरेटोरियम (ऋण स्थगन) की शुरुआत की। इसके कारण बैंकों की रकम तो फंसी, लेकिन वे इस रकम को एनपीए में भी नहीं दिखा पा रहे थे।
उन्होंने कहा कि इसने बैंकों की स्थिति खराब की। राजन ने कहा, पद संभालने के बाद मैंने मोरेटोरियम नीति खत्म कर दी। मुझे लगा कि एनपीए को अगर आगे और टाला गया तो इससे हालत बिगड़ती जाएगी। इसके बाद हमने बैंकों के बही खातों की जांच की। इससे ऐसे डूबे कर्जों का पता चला जिन्हें मोरेटोरियम नीति के कारण एनपीए नहीं किया गया था।